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महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत ग्रन्थों में भावपक्ष
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" सहसंवास्य दृष्टिश्चकोरीव चन्द्रमसं के किनीव वलाहककलमलिकुटुम्बिनीव कमलवनं पिकीव रसालकोरकं तं शिशुमुदीक्ष्यातीव सन्तोषमासादितवती । X × × नरपि तेन मौक्तिकेन शुक्तिरिवादरणीयतां कामधेनुरिव वत्सेन क्षीरभरितस्तनतामुद्यानमालेव वसन्तेन प्रफुल्लभावं समुद्रवेलेव शशधरेणाती वोल्लाससद्भावमुदाजहार हारल सितवक्ष:स्थला ।
महो किनौरसादपि रसाधिकोऽङ्कप्राप्तः पुत्रः प्रभवति यत्र न योवनहानिनं प्रसव पीड़ा, न चापुत्रवतीति नाम व्रीड़ा, समुक्लभ्यते च सहजमेव बाललालनक्रीड़ा जगतीत्येवं विचारितवती धनभीस्तमात्मजमिवातीव स्नेहेन पालयामास सरस्वतीव लम्बोदरम्।"
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यहाँ पर गोविन्द ग्वाला और घनश्री बत्सल - रस के माश्रय हैं। सोमदत्त मालम्बन है । गोविन्द का निःसन्तान होना, सोमदत्त की प्राप्ति, उसकी सरल मुस्कान इत्यादि उददीपन विभाव हैं । स्नेहपूर्वक देखना, रोमाञ्च इत्यादि धनुभाव हैं । हर्ष, गर्व, तर्क इत्यादि व्यभिचारिभाव हैं ।
रसाभास का स्वरूप
काव्य में जिन-जिन स्थलों पर रस- सामग्री का उचित रूप से प्रस्तुतीकरण न किया गया हो, जहाँ रसाभिव्यञ्जना में बाधा हो रही हो, रस की अभिव्यञ्जना पूर्णरूपेण न हो रही हो, वहाँ पर रसाभास होता है। प्रतएव रस का अनुचित रूप से प्रस्तुतीकरण रसाभास है | २
( ज ) कवि श्रीज्ञानसागर के संस्कृत ग्रन्थों में रसाभास
कवि की संस्कृत काव्यकृतियों के परिशीलन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि कवि ने रसाभास ( नामक ध्वनि-काव्य - उपभेद ) का भी चित्ररण किया है । जयोदय महाकाव्य में शुङ्गार रसाभास और भयानक रसाभास का चित्रण मिलता है। सुदर्शनोदय काव्य में शान्त रसाभास, शृङ्गार रसाभास भोर रौद्ररसाभास का चित्रण किया गया है । श्रीसमुद्रदत्तचरित्र में शान्त रसाभास का उल्लेख प्राया है। दयोदयचम्पू में शान्त रसाभास का वर्णन है। हां, वीरोदय महाकाव्य में रसाभास बिल्कुल भी नहीं है । मब सर्वप्रथम जयोदय के रसाभास सोदाहरण प्रस्तुत हैं :
१. वयोदयचम्पू, ३ | श्लोक १० के पूर्व के भौर बाद के गद्यभाग ।
२.
(क) 'तदाभासा अनौचित्यप्रवर्तिताः '
- काव्यप्रकाश, ४।३६वीं कारिका के पूर्वार्ध का प्रर्था ।