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महाकवि ज्ञानसागर के काव्य- एक अध्ययन हुमा । यह ऋतु वादलों से रहित, निर्मल प्राकाश में तारागणों को धारण करती हुई नवविवाहिता स्त्री के समान सुशोभित हो रही है। लोगों को प्रमुदित करने वाली स्त्री के समान हो इस ऋतु में कमल विकसित हो रहे हैं। शरद-ऋतु में नवविवाहिता से मिलने वाले प्रानन्द का मास्वाद कवि के शब्दों में लीजिए :
"परिस्फुरत्तारकता ययाऽपि सिताम्बरा गुप्तपयोधरापि । जलाशयं सम्प्रति मोदयन्ती शरन्नवोदेयमथावजन्ती ।।"
(वीरोदय, २१।२) इस ऋतु में साठी धान तैयार हो गया है । सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन की मोर जा रहा है । मेघों के सम्पर्क से प्राप्त होने वाला वर्षाकालीन जो जल लोगों के लिए कष्टकारक हो गया था, वही अमृतवर्षी चन्द्रमा की किरणों के सम्पर्क से प्रास्वाद्य हो गया है।
योगियों की सभा में परमात्मरूप सम्वन्धी शब्द का उच्चारण होता है, तो शरद् ऋतु में हंसों का शब्द सुनाई देता है. । योगियों की सभा में भोगी-जन मौन धारण करते हैं तो शरद-ऋतु में सर्पभक्षो मयूर भी चुप हो जाते हैं। योगियों को सभा में सज्जनों का समह स्वर्गप्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होता है तो शरद्-ऋतु में चमकते हुए तारागण माकाश में प्रागे बढ़ने का प्रयत्न करते हैं
शरद-ऋतु में विकसित हुए कमलों में भ्रभर गुंजन कर रहे हैं। पृथ्वी में कीचड़ भी नहीं है। शरत्कालीन पृथ्वी के सौन्दयं को देखकर ऐसा लगता है मानों कमलमुखी पृथ्वी भ्रमररूपी नेत्रों से शरद् ऋतु के सौन्दर्य का अवलोकन कर
इस ऋतु में आकाश और सरोवर की छवि तुल्य है। सरोवरों में श्वेत कमल विकसित हो रहे हैं; मोर पाकाश में तारागणों को कान्ति फैलर ही है। सरोवर बालहंस से सुशोभित हैं; माकाश में चन्द्रमा गतिमान है । आकाश रूपी गृह से मेघों के दोष को चन्द्रिका रूपी निर्मल जल से धो दिया गया है। रात्रि ने मानों वहां चन्द्रमा-रूपी दीपक रखकर तारागणों रूपी अक्षतों को बिखेर दिया है । बिखरे हुए तारागणों को देखकर ऐसा लगता है मानों शरद्-ऋतु के समीप में चन्द्रमा को बाता हुआ देखकर वर्षा-ऋतु क्रोध में प्राकर मुट्ठी में स्थित मणियों को पटक कर वहां से चली गई है। धान्य चरने के लिए पाया हुमा मुगसमूह, धान्य की रक्षा करने वाली सुन्दर बालिकामों के मधुर गीतों को सुनकर धान्य को चरना भूल जाता है। हंसों के सुन्दर शब्दों से पराजित होकर मोर मानों अपने पंखों को उखाड़कर फेंक रहे हैं। कृषक अपने तैयार धान्य को खलिहानों में एकत्र कर रहे हैं। कामदेव के कोष से भगवान सूर्य भी प्रप्रभावित नहीं है। अतः वह सिंह राशि को छोड़कर कन्याराशि पर पहुंच गए हैं। सप्तवणं वक्ष को सुगन्धि से सुगन्धित होकर शरत्कालीन वायु मथुन करने से शिथिल वधुनों की कामवासना को बढ़ा दी है। पुरुषों से करने