________________
महाकवि ज्ञानसागर का वर्णन - कौशल
२३२
ક
जयोदय में यात्रा वर्णन का दूसरा स्थल वही है, जहाँ जयकुमारः विवाह के पश्चात् अपने नगर में प्राते हैं :
प्रनेक घोड़ों, हाथियों प्रोर रथों से युक्त होकर जयकुमार, भरत चक्रवर्ती की प्राज्ञा से अपने नगर की प्रोर चल पड़ते हैं। उनके साथ चलने वाले सभी लोग अपनी नगरी में पहुँचने से लिए प्रत्यन्त व्याकुल हैं, अब नगर समीप हो रहा है; ऐसा अनुभव करके जयकुमार अपनी गर्दन को हिलाकर प्रसन्नता धारण करके चलते हैं। उनका रथ इस समय उनके मनोरथ के समान तीव्रगामी था । उसके साथ रथ में उनकी प्रिया सुलोचना भी थी। उनकी सेना में प्राकाश की धूलि से धूसरित करने वाले अनेक उत्तम घोड़े थे । उन घोड़ों की गति वायु के समान मार्ग का उल्लङ्घन कर रही थी। पैदल चलने वालों के समूह पृथ्वी पर सुशोभित हो रहे थे । x x x चन्द्रमा की कान्ति के समान निर्मल वायु मार्ग में चलती हुई मयूरों की पंक्ति के बहाने से उस राजा की कीर्ति को सुशोभित कर रही थी । हाथियों की पंक्ति मद जल बहा रही थी । सारी पृथ्वी धूलि से घूसरित हो रही
XXX उपकारी राजा के मा जाने पर वृक्षों ने मानों फल मोर पले धारण कर लिए थे। उन वृक्षों को देखकर राजा को सुख प्राप्त हो रहा था। XXX मार्ग में स्त्रियों राजा के ऊपर कटावा फेंक रही थीं। उस समय वह मार्ग वायु के भङ्कोरों से धौर कोहरे से युक्त था । भ्राम्रवृक्ष से मुक्त वह मार्ग - सुरतक्रीड़ा के प्राश्रम के समान लग रहा था। उस मार्ग में कुशापाश थी। धौर एक सुन्दर तथा श्रेष्ठ सरोवर भी था। वह सरोवर किनारे के वृक्षों तथा सुन्दर जल से युक्त था, प्रतः कल्पवृक्ष और प्रप्सराम्रों से युक्त स्वर्ग के समान था। उस मार्ग में मन को अच्छा लगने वाला एक वन भी था जो मार्गजनित श्रम को दूर कर रहा था । श्रञ्जनवृक्षों से युक्त वन की पृथ्वी, कुलवधू के समान सुशोभित थी । वहाँ के मयूर सुलोचना के केशपाशों से समता करने वाले थे । शस्य सम्पदा से युक्त पृथ्वी राजा को प्रसन्न कर रही थी । गजमुक्तानों को वहाँ के भीलों का सरदार राजा की प्रसन्नता के लिए लेकर प्राया । बस्ती के लोग प्राश्चर्य से राजा को देख रहे थे । धनाज की खेती करने वाले उन कृषकों की उदारता को देखकर राजा को सङ्कोच का अनुभव हो रहा था। राजा ने वहाँ की गोपबालानों के मुख में, समुद्रमंथन से उत्पन्न चन्द्रमा की कान्ति के दर्शन किए। जब वे सब वस्ती के निवासी दूध, दही इत्यादि लेकर राजा के पास प्राए, तब कुशल वार्ता पूँछकर राजा ने उन्हें विदा कर दिया। इस प्रकार मार्ग में यात्रा करते हुए राजा अपने नगर पहुँचे । '
१. जयोक्य, २१।१:६४