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महाकवि भानसागर सतनावमा
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रोजगात कापा
बयोदय महाकाय में रौद्र रस एक गौण स यह शान्त रस का पड़ा है।
म में विस मान है, प्रतः
हास्य-रस
जयोग्य महाकाल में एक स्वम पर हास्य रस की भी झलक दिखाई पड़ती है, और वह स्थल है-जयकुमार के विवाह में पाए हुए बरातियों का स्वागत । उदाहरण रूप में कुछ हास-परिहास प्रस्तुत हैं :
"प कश्चन नायनामवंशसमयस्यापि समीयतेऽवतंसः । परिहासबोभिरेव पन्यान्निजबासीभिरभोजमा सजन्यान् ॥
प्रयि चेतसि जेमनोतिवारः सकलण्यम्जनमोदनाषिकारम् । सुचिपात्रमिदं कयेत्पमुक्ताः सहसा अग्धि विधी तु ते मियुक्ताः ।। स्फटिकोचितभाजने जनेन फलिताया युबते: समादरेण । उरसि प्रणिधाय मोदकोक्ताहतियं नियमदितं करेण ।
तव सन्मुखमस्म्यहं पिपासुः सुरतीत्यं गदितापि मुग्धिकाच ॥ कलशी समुपाहरतु यावस्मितपुष्परियमपितापि तावत् ॥
मम मण्डकमेहि तावदालेऽस्ति कलाकन्दमपि प्रवेहि नाले । बटकं घटकल्पसस्तनौत: कटकं सटकद्दधामि पीतः ।। मसुरोचितमाह्वयामि बाले सरसं म्यम्बनमत्र भुक्तिकामे । मधुरं रसतात् पयोधरामधुना हारमिमं न कि कलाकम् ॥ उपपीडनतोऽस्मि तम्बि भावानुभूष्णुस्तककाम्रकाम्रता वा। बत वीमत चूषणेन भानिन्निति सा प्राह व चूतदाशुभाङ्गो॥ कि पश्वस्वयि संरसेरपि न कि नो रोचकं व्यञ्चनं तम्बी मवणाधिकं सनु तपाकारीति नो रजनम् । तस्मात्सम्मति सर्वतो मुखमहं याचे पिपासाकुसः । मामाभूस्मितवारिमुक पुनरितः स्वेदेन स व्याकुलः ।।'
यहाँ बारात में पाए हुए बारातियों पोर कन्यापक्ष की महिलामों के बीच भोजन के समय होने वाले हास-परिहास से कवि ने हास्य रस की अभिव्यञ्चना कराई है।
१. बयोग्य, १२॥१२२-१४.