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महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-प्रन्थों में भावपक्ष
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न भवो नाम पन्थ कोऽन्त्य भी प्रस्थानदायकः ।.
तस्भिश्चेन्द्रिय संज्ञानां लुण्टकानामुपक्रमः ॥"
(यह संसार एक भयानक जङ्गल के समान है, इसमें प्रवेश करने के लिए चार मार्ग हैं । इनमें से तो मार्ग को प्रने क उपद्रवों से अबरुद्ध हैं। मनुष्य जन्म नामक वो चौथा मार्ग है, वह प्रभी स्थान पर बना सकता है : किन्तु उसमें भी चोरों के समान इन्द्रियविषयों का उपद्रव होता ही रहता है।)
इति साधुसुधांशोवंचनामृतं पोत्वा स्वास्थ्यमुपलभमानो विषोपयोगसजातमोहतो रहितः सन्नखिलानुपाधिप्रकारानतीत्य यथाजातरूपतामनुजग्राह सोमदत्तः । सोमदत्तशत्यानुभावमतीत्य तपोधनप्रसङ्गेण विकासमाश्रितवती कमलिनीव तपसि चित्तं चकार । ....... विषा- वसन्तसेने एकमेव शाट मात्रविशेषमार्याव्रतम ङ्गीचक्रतुः ।"'
यहां पर सोमदत्त, विपा और वसन्नसेना शान्तरसः के प्राश्रय हैं । वस्तुतत्व का ज्ञान पालम्बनविभाव है। ऋषिराज के वचन, उनको वेशभूषा उद्दीपन विभाव है। सांसारिक पदार्थों को छोड़कर मुनि बनना अनुभाव है । निर्वेद, हर्ष पोर मति इत्यादि व्यभिचारिभाव हैं। (च) श्री ज्ञानसागर के संस्कृत काव्यों में अङ्गरस
कविवर श्रीज्ञानसागर ने अपने काव्यो में पात रस के अङ्गरसों के रूप में अन्य रसों का भी वर्णन किया है। अब पाप उनके काव्यों में वरिणत होने वाले रसों का अवलोकन कीजिए :बयोदय महाकाव्य में वरिणत अङ्गरस--
___ जयोदय में शान्त की पुष्टि हेतु जिन अन्य रसों का वर्णन है, वे इस प्रकार हैं :-शङ्गार, वीर, रोद्र. हास्य, बीभत्स और वत्सल रस । प्रब क्रमशः सोदाहरण ये रस प्रस्तुत हैं :शङ्गार रस
जयोदय महाकाव्य में इस रस को अभिव्यक्ति ६ स्थलों पर है। प्रायः कवि ने संयोग शङ्गार की ही अभिव्यक्ति कराई है।
काव्य के नायक जयकुमार मोर नायिका सुलोचना इस रस के परस्पर मालम्बन मोर माश्रय हैं। स्वयंवर-मप, जयकुमार और सुलोचना का अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक गुणों से सम्पन्न होना, एकान्त, चन्द्रोदय इत्यादि उद्दीपन १. योग्यचम्पू, ७ श्लोक १७ के बाद से मोक ३८ के पूर्व तक।