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महाकवि ज्ञानसागर को पात्रयोजना
१६१ जाता है, तब अपने पति के दुष्कर्मों पर पश्चात्ताप करती है; और बचे हुए विषयुक्त लड्डू खाकर पति के मार्ग का ही अनुसरण करती है।' गोबिन्न ग्वाला
यह ग्वालों को वस्ती में रहने वाला ग्वालों का प्रमुख व्यक्ति है। इसकी पत्नी का नाम धनधी है। सन्तानवत्सल
गोविन्द-ग्याला पोर इसकी पत्नी सन्तति सुख से वंचित है। भाग्यवश गुणपाल के षड्यन्त्र का शिकार बालक सोमदत्त इसे मिल जाता है; वह उसके प्रति वात्सल्य से भर उठता है; वह उसे पुत्रवत उठा लेता है; और घर जाकर अपनी पत्नी को देता है। गोविन्द एवं धनश्री यत्न से उसका पालन-पोषण करते हैं । गोविन्द वस्ती में उपलब्ध शिशा भी सोमदत्त को दिलवाता है । फलस्वरूप सोमदत्त इससे वास्तविक पिता का व्यवहार करने लगता है ।। सरल हृदय एवं प्रतिथि प्रेमी
गोविन्द बड़ा सरल हृदय पुरुष है। साथ ही प्रतिवत्सल भी है । दुष्ट गुणपाल चव इसके घर पहुंचता है तो यह उसका खूब प्रातिथ्य सत्कार करता है; और सोमदत्त को भी उसकी सेवा करने का मादेश देता है। गुणपाल के किसी षड्यन्त्र को यह नहीं जानता। भाग्यवश जब सोमदत्त, गोविन्द के जाने विना ही गणपाल का जामाता वन जाता है तो भी गोविन्द ग्वाला हर्षित होकर सोमदत्त को गुणपाल को ही सौप देता है जबकि सोमदत्त की अनुपस्थिति में उसका हृदय बारबार सोमदत्त की ही मोर लगा रहता है। यह मतिथि के आगमन पर सुख का मोर जाने पर दु:ख का अनुभव करता है। निम्नमध्यवर्गीय पात्र होते हुए भी यह अपने इन मानवोचित गुणों से स्तुत्य है । बसन्तसेना
यह उज्जयिनी नगरी को वेश्या है । वेश्या होते हुए भी दया, ममता, प्रेम पोर त्याग मादि गुण इसमें दृष्टिगोचर होते हैं। काव्य में इसका किंचित्काल के लिए ही उपस्थितिकरण कथानक को नया मोड़ दे देता है। हृदय की उदारताव यह एक निर्दोष व्यक्ति को मत्यु के मुंह में जाने से बचा लेती है।५ गुणपाल मोर
१. दयोदयचम्पू, ६। श्लोक ६ के बाद का गवभाग । २. वही, ३ श्लोक १० के पूर्व का गद्यभाग, १०-१४ ३. वही, ५॥१-३ ४. वही, ५॥ श्लोक ३ के बाद का दूसरा भाग। ५. वही, श्लोक ११ के पूर्व का गवभाग, ११-१३