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महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन
मार्ग में एक वधिक को लोभ देकर नियुक्त कर देता है । घर आकर वह सोमदत्त को मन्दिर पूजा की सामग्री सहित भेजता है। मार्ग में महाबल कन्दुक-क्रीड़ा में सोमदत्त को लगाकर स्वयं पूजा-सामग्री लेकर मन्दिर को चल देता है । सोमदत्त मोर महाबल से अनभिज्ञ वधिक महाबल का ही वध कर देता है। गुणपाल यह बुरा समाचार सुनकर अपना सिर पीट लेता है ।' किन्तु फिर भी सोमदत्त के वध को इच्छा उसके मन से नहीं निकलती। उसे वह अपने मार्ग से निकालना ही चाहता है । यहां तक कि वह यह भी गम्भीरता से नहीं सोचता कि सोमदत्त को हत्या से उसकी पुत्री विधवा हो जाएगी। पव परेशान होकर वह अपनी इच्छा अपनी पत्नी को भी बता देता है। उसके दुःख-निवारण हेतु गणश्री विषयुक्त लड्डू तैयार करती है । गुणपाल के भोजन मांगने पर विषा अनजाने में उन विषयुक्त लहनों को ही उसे दे देती है । फलस्वरूप सोमदत्त को मारने के प्रयत्न में वह खुद हो बलि का बकरा बन जाता है ।२ वह कितना निर्दयी है कि न सोमदत्त की निराश्रितता की उसे चिन्ता है, न उसके रूप-गुण, शुभ लक्षणों के प्रति उसकी रुचि है, न उसे गोविन्द ग्वाले के वात्सल्य की चिन्ता है, यहां तक कि वह अपनी पुत्री के वैषध्य का विचार भी नहीं कर पाता । अपनी एक दुर्भावना के कारण धन का लालच देकर वह दो व्यक्तियों को प्रेरित करता है। गोविन्द और सोमदत्त से बार-बार झूठ बोलता है। अपने पत्र मौर,पत्नी की हत्या के कारण उपस्थित करता है और स्वयं अपनी दुर्भावना को प्राग में भस्म हो जाता है।
प्रतः गुणपाल वात्सल्य रस से हीन, निर्दयी, मोहान्ध और सोमदत्त का प्रबलतम धूर्त शत्रु है। गुरगषो
यह 'दयोदयचम्पू' के खलनायक गुणपाल की पत्नी और विषा की माता है। यह सौन्दर्यवती, चतुर और पुत्रवत्सल है। अपने पुत्र महाबल से प्रेम होने के कारण ही उसकी सम्मति से अपनी पुत्री का विवाह सोमदत्त से करने को तैयार हो जाती है । पुत्र की असामयिक मत्यु पर अत्यन्त दु:खित हो जाती है। वह पति के हर अच्छे-बुरे काम में सहयोग देने को तैयार रहती है। पति की दुश्चिन्ता को दूर करने के लिए प्रोर अपने वैधव्य का विचार करके विषयुक्त लड्डू तैयार करती है । भाग्यवश इन लड्डुषों को खाकर उसका पति मृत्यु के मुंह में पहुँच १. दयोदयचम्पू, ५।श्लोक ९ के बाद के गद्यभाग से श्लोक १४ के बाद के
गद्यभाग तक। २. वही, प्रारम्भ से श्लोक ६ के पूर्व तक। ३. वही, ४ श्लोक १७ के पूर्व का गद्यभाग एवं ११-२२ ४. वही, ५ अन्तिम गद्यभाग में एक । ५. वही, ६.प्रारम्भ के गद्यभाग से श्लोक ६ के बाद के गद्यभाग तक ।