________________
महाकवि ज्ञानसागर का वन-कौशल
-
२१३
वायु मानों सूर्य से वियुस्त दक्षिण दिशा का निःश्वास है। कमलिनियों का पराग स्त्रियों की प्रांखों में पड़ रहा है. ऐसा लगता है मानों कामदेव ने, स्त्रियों के हृदय रूपी धन को चुराने के लिए उन कमलिनियों को नियुक्त किया है । आम्रवृक्षों में संलग्न भ्रमर प्राज मानों वियोगो जनों को दुःख पहुँचाने का पाप करने वाले वसन्त को दुःखी कर रहे हैं। इस वसन्त ऋतु में वन-प्रदेश अत्यधिक शोभा से सम्पन्न हो रहे हैं । चारों प्रोर कामदेव का साम्राज्य फैल रहा है। रसराज शृङ्गार के प्रातिथ्य में जनसमुदाय जुट गया है और लोग प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं।'
दूसरे स्थल पर वन-विहार के पूर्व मानों कवि अपनी शब्दावली से वसन्त का स्वागत करता है :--
स वसन्त प्रागतो हे सन्तः, स वसन्तः ।। परपुष्टा विप्रवराः सन्तः सन्ति सपदि सूक्तमुदन्त: ।।१।। लताजातिरुपयाति प्रसरं कौतुकसान्मधुरवरं तत् ॥२॥ लसति सुमनसामेष समूहः किमुत न सखि विस्फुरदन्तः ।।३।। भूरानन्दमयीयं सकला प्रचरति शान्तेः प्रभवं तत् ।।४।। _ -- --
- स वसन्तः स्वीक्रियतां सन्तः स वसन्तः ।। सहजा स्फुरति यतः सुमनस्ता जडतायाश्च भवत्यन्तः ।।१।। वसनेभ्यश्च तिलालिमुक्त्वाऽऽह्वयति तु दंगम्भयन्तत् । सहकारतरोः सहसा गन्ध: प्रसरति किन्नाह जगदन्तः ।।३।।
परमारामे पिकरवश्रिया भूरानन्दस्य भवन्तः ।।४॥२ (वसन्त ऋतु सब प्राणियों का मन लुभाती है। कोयल की मधुर वाणी के साथ ही साथ विप्रवरों के वेदमन्त्रों का स्वर भी सुनाई दे रहा है। चारों ओर विभिन्न प्रकार के पुष्प खिल रहे हैं । सारी पृथ्वी पर प्रानन्द का साम्राज्य हो रहा है ।
जाड़े की जड़ता को समाप्त करने वाली इस वसन्त ऋतु का स्वागत करो, जिसमें पूष्प विकसित होते हैं। मनुष्य अधिक वस्त्र पहिनना छोड़ देता है । मान-वृक्ष की सुरभि चारों ओर फैल रही है । कोयल की वाणी सुनाई दे रही है।) ग्रीष्म-वर्णन
पूर्वभवों का स्मरण करने के अनन्तर भगवान् के मन में उठने वाले विचार वृद्धि को प्राप्त हुए । उस समय ग्रीष्मकाल का आगमन हुआ; और दिन वृद्धिगत होने लगे । सूर्य की प्रचण्डता पर कवि को उद्भावना देखिये :
१. बीरोदय, ६।१२-३७ २. सुदर्शनोदय, ६।१-२ गीत।