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महाकवि ज्ञानसागर का वर्णन - कौशल
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दो स्थलों से सम्बन्धित नदी-वर्णन को विस्तार न देकर मैंने इनका परिचय मात्र कराना ही उचित समझा है ।
सरोवर-वर्णन
कविवर ज्ञानसागर की कृतियों के परिशीलन से ऐसा लगता है कि सरोवरवर्णन की सम्भवतः उन्होंने उपेक्षा कर दी है । कवि ने सरोवर प्रथवा उसके तीर का वर्णन पाँच बार किया है, पर वह है अत्यन्त संक्षिप्त | विदेह, मालव और अंग देशों की भौगोलिक स्थिति का परिचय कराते समय कवि ने वहाँ स्थित सरोवरों का उन्हीं देशों की समृद्धि को बताने के लिए उल्लेखमात्र ही किया है ।" यदि हम एक स्थल पर उल्लिखित उनके प्रत्यल्प सरोवर-वर्णन को देखें, तो हम यह कल्पना अवश्य कर सकते हैं कि यदि कवि ऋतु इत्यादि के समान सरोवरों के सौन्दर्य का वर्णन करता, तो उसे सफलता अवश्य ही मिलती। वह लघु उद्धरण द्रष्टव्य है :" सुप्रसिद्ध मालवना मदेशः - - ललिताप्सरः । परिवेषतया च किला परस्वर्गप्रदेश इव समवभासते ।"
- ( दयोदय, १ श्लोक 8 के बाद का गद्यभाग 1 ) मनोहारिणी प्रप्सरानों से
(प्रर्थात् - सुन्दर जलाशयों से युक्त वह मालव देश युक्त स्वर्ग के समान सुशोभित होता है । )
ग्रीष्म ऋतु वर्णन-प्रसङ्ग में कवि ज्ञानसागर ने सरोवर मीर उसके तीर का भी प्रतिसंक्षिप्त किन्तु स्वाभाविक चित्रण किया है
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जिस प्रकार श्रेष्ठ राजा के शासन करने पर राज्य में मूर्खों का प्रभाव होने लगता है, उसी प्रकार सहस्ररश्मि भगवान् सूर्य का प्रताप प्रचण्ड होने पर सरोवर का जल भी सूखने लगता है । सरोवर का जल प्रस्यन्त तप जाता है, इसीलिए भ्रमर कमलों का प्राश्रय छोड़कर समीपस्थ वृक्षों की लताओं का प्राश्रय ले लेते हैं। सरोवर के तौर पर राजहंस कमल युक्त मृणालखण्ड को मुंह में रखकर शोभित होते हैं ।
१. (क) बीरोदय, २०१६
समुद्र-वर्ष -
नदी मौर सरोवर तो जलसम्पदा के छोटे-छोटे रूप हैं, पर जलसम्पदा का वास्तविक सौम्यं तो हमें रत्नाकर में हो देखने को मिलता है । श्रीज्ञानसागर ने भी अपनी रचनाओं में सात बार समुद्र का और दो बार उसके तट का वर्णन किया है ।
(ख) सुदर्शनोवय १।१e
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(ग) दयोदय, १ | श्लोक & के बाद का गद्यभाग । वीरोदय, १२-८-२०