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महाकवि ज्ञानसागर का वर्णन कौशल
है । दो स्थलों पर भारतवर्ष और अंगदेश को स्थिति को बताते समय ' कवि ने नदियों का केवल नाम मात्र के लिए ही उल्लेख किया है । इसके प्रतिरिक्त एक स्थल पर विदेह देश की नदियों का एक स्थल पर अवन्ती- प्रदेश में बहने वाली शिप्रा नदी का, और चार स्थलों पर देवनदी गङ्गा का वर्णन किया है ।
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विदेह देश की नदियों का वर्णन करते हुए कविवर लिखते हैं कि 'विदेह देश की नदियाँ स्वच्छ जल वाली थीं, और निरन्तर जल से भरी हुई होकर प्रवाहित होती थीं। उनमें विकसित नीलकमलों के बहाने अपने नेत्रों को खोलकर पृथ्वी मानों उस देश की समृद्धि का अवलोकन करती है । समीपस्थ वृक्षों को छोड़कर नीचे समुद्र की प्रोर जाती हुई नदियों का यह कार्य वैसा ही है जैसे कोई प्रमदा प्रपने समीपस्थ तरुण को छोड़कर किसी वृद्ध पुरुष से मिलन के लिए जाय । २ भवन्ती प्रदेश में बहने वाली शिप्रा नदी का भी कवि ने बड़ा ही प्रालङ्कारिक वर्णन किया है :
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अवन्ती प्रदेश में शिप्रा नाम की नदी है, जिसके सम्पर्क से शीतल होकर वायु पथिक जनों का पसीना सुखाने में समर्थ होता है । इस नदी में मछलियाँ प्रसन्नतापूर्वक क्रीडा करती हैं । प्रत्यधिक लहरों से युक्त होने के कारण यह नदी बहुत से सिहों वाली प्रटवी की समता करती है । अमृततुल्य जल से परिपूर्ण होने के कारण स्वर्गीपम हो रही है, गम्भीरता को धारण करती हुई ब्रह्मविद्या के समान हो रही है, अपने जल से दोनों किनारों को ऐसे तोड़ रही है, जिस प्रकार एक व्यभिचारिणी स्त्री अपने दोनों कुलों- पितृकुल और पतिकुल को कलंकित करती है । 3
यह पहले ही कहा जा चुका है कि देवनदी गङ्गा का वर्णन कवि ने चार स्थलों पर किया है। सर्वप्रथम माकाशगङ्गा का प्रसङ्ग प्राता है । भगवान् महावीर के जन्माभिषेक हेतु इन्द्र देवगणों सहित कुण्डनपुर के लिए प्रस्थान करते हैं । मागं मैं daver प्राकाशगङ्गा के दर्शन करते हैं, उन्हें वह गङ्गा शुभ्रसलिला होने के कारण ऐसी लगती है, जैसे वह अत्यन्त वृद्ध देवलक्ष्मी की वेणी हो, या स्फटिक मणियों से विरचित स्वर्गलोक के मुख्य द्वार की देहली हो । ४
गङ्गा नदी के वर्णन से सम्बन्धित दूसरा स्थल वहाँ पर है, जहाँ जयकुमार सुलोचना के साथ काशीनगरी से निकलकर गङ्गा नदी के तट पर ठहरते हैं। गंगा
१. (क) वीरोदय, २८ (स) सुदर्शनोदय, २।१५
२. दयोदय, २०१५-१७
३. दयोदय, १ श्लोक २१ के बाद का चतुर्थ गद्यभाग ।
४. वीरोदय, ३।७-६