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महाकवि ज्ञानसागर के काव्य --एक अध्ययन जम्बूदीप' और भारतवर्ष की स्थिति बताते हुए२ कवि ने उपमान रूप में समुद्र का केवल उल्लेखमात्र ही किया है । वर्षा ऋतु-वर्णन के प्रसंग में समुद्र का संक्षिप्त वर्णन किया गया है :
वर्षा ऋतु में प्रत्यधिक अल वाली नदियों के जल को पाकर समुद्र के जल में वृद्धि हो रही है । अत्यधिक जल-ग्रहण करने से उस समुद्र के ऊपरी भाग में फेनसमूह वैसे ही दृष्टिगोचर हो रहा है, जैसे मद्यपान से उन्मत्त पुरुष के मुंह से झाग निकलने लगते हैं ।
भगवान महावीर के जन्माभिषेक के समय कवि ने समुद्र का विस्तत वर्णन किया है । नवजात शिशु भगवान् वीर का अभिषेक करने के लिए देवगण उन्हें सुमेरु पर्वत पर ले गए । क्षीर सागर के जल से उनका अभिषेक किया गय! । मानों वह समुद्र वृद्धावस्था के कारण ऊपर नहीं जा पा रहा था, इसलिए देवगण ही उसे भगवान् के समीप ले जाकर उस पर बड़ी कृपा कर रहे थे। उसकी तट सम्पदा युवती स्त्री की शोभा को धारण कर रही थी, जिसमें लीनी, अखरोट, बहेड़ तथा तिलक जाति के वक्ष थे, देवगण इस तट-सम्पदा का निरीक्षण कर रहे थे। जिस प्रकार एक वृद्ध पुरुष का शरीर झुरियों वाला होता है वैसे ही समुद्र में तरंगें थी। कोमल पत्तों और माम्रवृक्षों को विकसित करने वाली शरजाति की घास से युक्त समुद्र की वेला देवतामों के लिए सुखदायिनी हुई जब देवगण भगवान के अभिषेक-हेतु क्षीरसागर से जल ले जा रहे थे, तब ऐया लगता था मानों वह कोई पूज्य वृद्ध व्यक्ति हो। समुद्र के जल को पवित्र करने के लिए ही मानों इन्द्र ने उससे भगवान् का अभिषेक किया। भगवान् के शरीर के लिए उस समुद्र की जलधारा अजलि के समान प्रत्यल्प हो गई। उसका जल चारों ओर फैलकर, दिशायों की प्रसन्नता को प्रकट सा करने लगा। ऐसा लगता था, मानों भगवान् की देह से उपकृत एवं प्रसन्न समुद इन्द्रपुरी पहुंच रहा हो।
महाकवि ज्ञानसागर ने समुद्र एवं समुद्र-तट का जो यह स्वाभाविक चित्र पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया हैं, यह प्रसंगवग ही है। इसीलिए उनके अन्य प्राकृतिक पदार्थों के वर्णन के समान यह विस्तार नहीं पा सका है। फिर भी उपमा मोर उत्प्रेक्षा अलंकारों से युक्त होने के कारण यह समुद्र-वर्णन प्रतीव मनोहर है।
१. वीरोदय, २०४ २. वीरोदय, २१७, ८७-८ ३. वीरोदय, ४।२३-२४ ४. वोरोदय, ७।२२.२८, ३३