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महाकवि ज्ञानसागर का वर्णन-कौशल
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जो चन्द्रोदय किसी नायक वा नायिका के लिए सुखकारी होता है, वियोगावस्था में वही नायक या नापिका की पीड़ा को बढ़ा देता है। इस प्रकार कवि-कृत प्रकृतिवर्णन काव्य में निष्पन्न होने वाले रस की निष्पत्ति में भी विशेष रूप से सहायक होता है । साथ ही उसके हृदय की सुकुमारता, प्रकृति-प्रेम और वर्णन कौशल का भी वास्तविक ज्ञान पाठक को हो जाता है । अतएव हम कही कते हैं कि काव्य में वर्ण्यमान छन्द, मलङ्कारों के समान ही प्रकृति-वर्णन भी महत्वपूर्ण है । प्रकृति वर्णन से मोर भी अधिक मनोहारिणी बनी हुई कृतियां साहित्यक प्रकृति वर्णन के महत्त्व को सिद्ध कर देती हैं।
संस्कृत-साहित्य का विकास जितना अधिक प्रकृति-नटी के अंक में हमा, उतना राज्याश्रय में नहीं । यही कारण है कि संस्कृत-साहित्य का प्रकृति-वैभव अन्य किसी भी माहित्य के प्रति-वंभव से कही बढ़ा-चढ़ा है। कालिदास का 'मभिज्ञानशाकुन्तल' प्रौर बाणभट्ट की 'कादम्बरी' इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं। अपनी चिरसहचरी प्रकृति के सौन्दर्य का वर्णन करते समय, कवि कभी-कभी तो अपना वर्ण्य-विषय को भी भूल जाता है; और काव्य के पूरे सर्ग में प्रकृति-नटी के ही वैभव का वर्णन करता चला जाता है। यह वात पद्य-कवियों में गद्य कवियों की प्रपेक्षा अधिक देखी जाती है। क्योंकि मय-कवियों का प्रकृति-वर्णन कथा-प्रवाह के अधीन होता है।
- हमारे पालोच्य महाकवि श्रीज्ञानसागर भी अपने काव्यों में स्थान स्थान पर प्रकृति-नटी के इस रूप-वैभव से प्रभावित होते हैं। उन्होंने यथासम्भव अपने काम्यों में प्रकृति-नटी की रूप-सम्पदा का वर्णन किया है । महाकवि का यह कृतिकवर्णन कृत्रिमता और कल्पना की उड़ान से दूर स्वाभाविकता से प्रोत-प्रोत है। इनके काव्यों में वरिणत रात्रि जहां पाठक के हृदय में भांति को उत्पन्न करता है। वहाँ प्रभात-वर्णन एक नवीन-पाशा को लिए हुये उपस्थित होता है । एक मोर पाठक ग्रीष्म की भयानकता से कम्पित हो उठता है तो दूसरी ओर वसन्त का सौन्दर्य उसे प्राकर्षित कर लेता है। अपने काव्यों में श्रीज्ञानसागर ने पर्वत, नव, नदी, सरोवर, समुद्र, द्वीप, ऋतु, प्रभात, सन्ध्या, रात्रि इत्यादि प्राकृतिक पदार्थों का वर्णन करते हुए, प्रकृति के प्रति अपने असीम प्रेम को प्रस्तुत किया है।
प्रब आपके समक्ष इन सभी प्राकृतिक पदार्थों का वर्णन प्रस्तुत किया जायगा।
पर्वत-वर्णन:--
पर्वतीय स्थलों के प्रवलोकन से प्रत्येक व्यक्ति को यह अनुभव होता है कि प्रकति का जो सौन्दर्य हमें गगनचुम्बी पर्वतों पर देखने को मिलता है, वह भन्यत्र दृष्टिगोचर नहीं होता। इसीलिए सहृदय कवि अपने काव्यों में प्रकृति के इस