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उसके परिवार से इसका अच्छा परिचय है । विषा इसकी सखी भी है ।"
में
जिस समय यह भोमदत्त के वैराग्य के बारे में सुनती है, उस समय संसार सुख के प्रभाव का अनुभव करती है। अतः सोमदत्त के साथ ही यह भी श्रात्मोद्धार में प्रयत्नशील हो जाती है। यह विषा के साथ ही प्रायिकाव्रत की धारणा कर लेती है प्रोर अपनी तपस्या के अनुरूप स्वर्ग को प्राप्त करती है।
महाकवि ज्ञानसागर के काव्य - एक म्रध्ययन
प्रत्यपात्र --
इनके अतिरिक्त कुछ अन्य पात्र भी हैं, जिनका महत्व उपर्युक्त पात्रों के समान तो नहीं है, किन्तु फिर भी उनका उल्लेख करना प्रसंगत न होगा । सर्वप्रथम जयोदय' महाकाव्य के पात्र प्रस्तुत हैं
:
अनवद्यमति राजकुमार प्रर्ककीर्ति का मंत्री है। वह जयकुमार की योग्यता से परिचित है, इसलिए राजा को समझाता है कि सुलोचना प्रौर जयकुमार एक दूसरे के योग्य हैं। राजा को उनसे शत्रुता नहीं करनी चाहिए। किन्तु प्रकीति का एक सेवक बहुत धूर्त है, वह अकंकीर्ति को जयकुमार से युद्ध के लिए उकसाता है। काशीनरेश प्रकम्पन का दूत सार्थक वारणी में बोलता है । वह राजा प्रकम्पन, राजकुमारी सुलोचना की प्रशंसा करता है । प्रक्षमाला सुलोचना की छोटी बहिन है। काशीनरेश इसका विवाह अकीति से करते हैं। भरतचक्रवर्ती सार्वभौम सम्राट् हैं । जयकुमार इन्हीं के सेनापति हैं । प्रत्येक राजा अपने राज्य की सम्पूर्ण गतिविधियां इनको बताता है। ७ ऋषभदेव तो आदि तीर्थङ्कर हैं । यह सम्राट् भरत के पिता हैं । यह जयकुमार को उपदेश देते हैं । इन्हीं से दीक्षा प्राप्त करके जयकुमार तपस्या करने में संलग्न हो जाते हैं।
वीरोदय महाकाव्य के एक पात्र हैं-- देवराट् इन्द्र । यह उत्सवप्रिय हैं । भगवान् महावीर के भक्त हैं : भगवान् के जन्म के अवसर पर इन्द्र उनके अभिनन्दन
१. जयोदय, ४ | श्लोक १२ के बाद का गद्य भाग ।
२. वही, ७ श्लोक ३८ के पूर्व के गद्यभाग और बाद का गद्यभाग ।
३. वही, ७१३२-४३
४. बही, ७।१-१७
५.
समना मनुजो यस्यां महिला स। रसालया । श्रीधरोsधीश्वरो यस्याः सा काशी रुचिरा पुरी ॥
वही, ६३, १६
७. वही, ६।६, २०१० ८. वही, २७द सगं ।
- वही, ३1३०