________________
महाकविमानसागर के संस्कृत-काव्य-प्रन्यों के बोत
रोनों ही काव्यों की कपा की प्रतः कषानों को हटाने का प्रयत्न किया है। 'वीरोदय' महाकाव्य में परिणत जन्माभिषेक.'महापुगण में रिणत जन्माभिषेक की अपेक्षा अधिक रोचक है।
___'सुदर्शनोदय की कथा बिन छ. ग्रन्थों में मिलती है। उनमें मूल स्रोत 'ब्रात्कषाकोश ही है। प्रन्य ग्रन्थकारों ने इसी के माधार पर अपनी रचनाय प्रस्तुत की हैं, किन्तु हमारे कवि ने इन रचनामों से भी कुछ बातें ग्रहण की हैं :- यथा सुदर्शनोदय' में प्रारापनाकपाकोश' के अनुसार ही सुकान्त की उत्पत्ति एवं सात पुतलों का वर्णन नहीं मिलता, वरन् उसमें पूर्वजन्मवृत्तान्त एवं पांच स्वप्नों का वर्णन मुनि नयनंदि विरचित 'सुदंसणचरिउ' के भी अनुसार है । सेठ वृषभदास का मुनिदर्शन भी नयनंदि के अनुसार है। सुभग ग्वाले द्वारा रातभर मुनि की सेवा का वर्णन 'सुदर्शनोदय' के समान ही 'पुण्यासव-कथाकोश' एवं सकलकोति विरचित 'सुदर्शनचरित' में भी मिलता है। श्रीज्ञानसागर ने 'बृहत्कथाकोश' के समान ही अपने इस काव्य में अन्तःकथानों को नहीं बढ़ाया है। कथा को काव्य रूप में परिणत करने में उन्हें सफलता मिली है। कवि द्वारा किये परिवर्तनों एवं परिवर्धनों से काव्य में पर्याप्त रोचकता मा गई है। साथ ही काव्य के नायक का स्थान भी पाठक के समक्ष ऊंचा हो गया है।
श्रीसमुद्रदत्तचरित्र' का कयास्रोत निस्सन्देह 'बृहत्कथाकोश' ही है। 'माराधनाकथाकोश' की कथा भी इसी के प्राधार पर लिखी गई है। किन्तु कवि ने भद्रमित्र को राजश्रेष्ठी बनाने का वर्णन 'पाराधना-कथाकोश' के ही अनुसार किया है। इस काम्य के मध्यभाग में रोचकता की कमी है।
'योदयबम्पू' काव्य के भी कथानक का बोत 'बृहत्कथाकोश' ही है। कोश की कथा को 'चम्पूकाव्य' के रूप में परिणत करने में कवि को जो परिवर्तन एवं परिवन करने पड़े हैं, उनसे काव्य में रोचकता एवं नाटकीयता का समावेश हो
पपि कवि ने अपने काग्य मुख्य रूप से 'महापुराण' एवं बृहत्कथाकोश' के ही पाधार पर लिखे हैं, तथापि हम ऐसा नहीं कह सकते कि कवि की कृतियाँ इन दोनों की अनुरूतियां हैं। कवि ने अपने वर्णनकोशल, प्रलंकार-प्रयोग, जनदर्शनोपदेश इत्यादि से कवायों को काव्य में बदल दिया है। इस प्रकार सात्त्विक अभिरुचि वाले पोर दार्शनिक अभिरवि वाले दोनों ही प्रकार के पाठकों के लिए सामग्री जुटाने में कवि को पद्भुत सफलता मिली है।