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महाकवि ज्ञानसागर के काग्य-एक अध्ययन
मुक्तक नामक पद्य-काव्य भेद के अन्तर्गत प्राती है। संस्कृत काव्य-शास्त्रियों को रष्टि में मुक्तक-काव्य ऐसा छन्दोबद्ध काव्य है, जिसके पद्यों की विषय-वस्तु स्वतन्त्र होती है । अतः निरपेक्ष विषय-वस्तु वाले पद्यों के संग्रह को मुक्तक-काव्य कहते हैं।'
प्रस्मदालोच्य महाकवि ज्ञानसागर जी को उक्त रचना में मुक्तक काम्य का यह लक्षण पूर्णरूपेण घटित होता है। किन्तु इसके 'मुनिमनोरंजनशतक' नाम में 'मनि' एवं शतक' शब्द तो ठीक है, किन्तु 'मनोरंजन' शब्द का प्रयोग प्रापत्तिजनक है । क्योंकि इस कृति का प्राद्योपान्त परिशीलन करने से ज्ञात होता है कि इसमें मनोरंजन नाम की कोई वस्तु नहीं। इसमें तो मुनियों के माचार-व्यवहार के विषय में लिखा गया है । इस दृष्टि से महाकवि यदि इसका नाम 'मुनिधर्मनिरूपण' रखते तो पषिक संगत होता। किन्तु यह भी सम्भव है कि वह स्थूल मनोरंजन को मनोरंजन मानते ही न हों। उन्हें कत्र्तव्य-पालन एवं धर्मयुक्त चेष्टामों में ही मनो. रंजन-प्राप्ति होती हो । यदि ऐसा रहा है, तब तो ठीक ही है।
इसमें १०० श्लोक पाए जाते हैं, जैसाकि इसके नाम में पाए हुए 'शतक' शब्द से ही स्पष्ट है । इस रचना की विषय-वस्तु है मुनियों के कर्तव्यों का निरूपण । मुनवेश धारण वाले व्यक्ति को बाह्य प्राडम्बर पूर्णरूपेण छोड़ देना चाहिए। उसे अपने उपयोग के लिए एक मयूरपिच्छिका और कमण्डलु धारण करना चाहिए। एक ही समय भोजन एवं जल, ग्रहण करना चाहिए। रात्रि के समय कहीं नहीं जाना चाहिए । जब कोई श्रद्धापूर्वक भोजन दे, तभी ग्रहण करना चाहिए। पंचमहावतों के प्रति प्रतीव सावधान रहना चाहिए। भाषा, एषणा इत्यादि पंच समिति, त्रिगुप्ति, सम्यकदृष्टि, सम्यगशान और सम्यक्चारित्र- इस रत्न-त्रय को धारण करना चाहिए। जनता को प्रबुद्ध करना, धर्म पर मास्था रखना, प्रात्मस्वरूप को पहिचानना प्रादि मुनियों के कर्तव्य हैं ।
कवि की इस रचना को भाषा-शैली सरल एवं सुबोष है। यह त्याग का पाचरण करने की इच्छा रखने वाले व्यक्तियों के लिए माज अत्यन्त उपयोगी है।
१. 'छन्दोबद्धपदं पयं तेनैवेन च मुक्तकम् ।'
- साहित्यदर्पण, ६।३१३