________________
कामशास्त्रीय विधाएं
.
.
८. गुगयुक्त
'वयोदय' माधुर्य' मोर प्रसाद गुण सम्पन्न रचना है । है. मागों में विभक्त
प्रायः देखा जाता है कि चम्पू-काव्य उच्छवास, स्तबक इत्यादि में विभक्त होता है। हमारे पालोच्य कवि की यह कृति 'दयोदय' भी सात लम्बों में विभक्त है। इन लम्बों के पद्यों में अनुष्टुप्, उपजाति, इन्द्रवधा, उपेन्द्रवजा, वंशस्थ, वसन्ततिमका, बियोगिनी, द्रुतविलम्बित, शिखरिणी, शार्दूलविक्रीडित इत्यादि छन्दों का प्रयोग किया गया है।
'दयोदय' के परिशीलन से यह ज्ञात होता है कि इसकी कया चमत्कारीस्पादक है। स्थान-स्थान पर उक्तिचित्य के दर्शन होते हैं। पद्य के माध्यम से शान्दी कोड़ा, गद्य के माध्यम से शादी कीड़ा, प्रसाद-माधुर्य-गुण एवं अन्योक्ति का मिला जुला चमत्कार, तथा सुभाषित मुक्ता-राशि के स्थल यत्र-तत्र दृष्टिगोचर होते हैं।
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि काव्य-शास्त्रियों द्वारा मान्य चम्पू-काव्य की सभी विशेषताएं हमें 'दयोदय चम्पू में मिलती हैं। इसके अतिरिक्त इसमें गद्य पद्य के मिश्रण का जितना प्राधान्य है, उतना और किसी अन्य तत्त्व का नहीं । 'विरुद-काव्य' में प्राप्य राजस्तुति का इसमें सर्वथा प्रभाव है । विविध भाषा में रचित करम्भक काव्य के समान इसमें अनेक भाषायें न होकर केवल संस्कृत भाषा है। इसके पद्य संवादों की पुष्टि के लिए नहीं हैं। कथा-साहित्य की भांति इसमें पद्यमात्रा विरल न होकर अविरल है । अतः स्पष्ट है कि 'दयोदय' एक चम्पू-काव्य है, जो गद्य-पद्यमयी-गंगा-यमुना के संगम को जलधारा रूप वाणी से पाठक को पाह्लादित करने में पूर्ण समर्थ है ।
मुनि मनोरंजन शतक
संस्कृत भाषा में लिखी गई कवि की यह छठी साहित्यिक कृति है । यह कति
१. दयोदयचम्पू, ४२० २. बही, ११२३ ३. वही, २।२४ ४. वही, १ श्लोक २१ के बाद का चतुर्थ गद्यभाग। ५. वही, १ श्लोक के बाद की सूक्ति, ३ प्रथम गवभाग को सूक्ति । ६. वही, ४।२१