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महाकवि ज्ञानसागर को पात्रयोजना
वह सहते रहे । शीत में सिहरन, वर्षा में जलधारा पोर ग्रीष्म का संताप, उनका कुछ न विगाड़ सके । उन्होंने भूख-प्यास पर भी विजय प्राप्त कर लो। अन्त में वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को उन्हें कैवल्य ज्ञान प्राप्त हो गया पोर उनका अन्तःकरण पूर्णरूपेण निर्मल हो गया।' परोपकारी
भगवान् ने जो उग्रतपश्चरण किया, उनमें कोई स्वार्थ निहित नपा। सांसारिक प्राणियों के दुःख ने ही उन्हें वैराग्य की ओर अग्रसर किया था। जिस प्रकार एक अच्छा चिकित्सक रोगियों की उचित चिकित्सा के लिए स्वयं प्रशिक्षण ग्रहण करता है. उसी प्रकार जनता को प्रबुद्ध करने के लिए भगवान ने भात्मशुद्धि की, और फिर जनता की सेवा में लग गए। जन धर्म के व्याख्याता
भगवान में अद्भुत व्याख्यानशक्ति है । उन्होंने अपने व्याख्यानों द्वारा जनता को ऋषभदेव के जैनधर्म के सम्पूर्ण सार-तत्व से परिचित कराया। उनकी अद्भुत व्याख्यान शक्ति से प्रभावित होकर ही गौतम इन्द्रभूति इत्यादि गणपर उनके वशवर्ती हो गए । अपनी व्याख्यान-शक्ति के कारण वह माराजरंक सभी के बन्ध बन गए थे।
सांसारिक प्राणियों के दुःख से दुःखी, त्रिकालज, भक्तवत्सल, महिंसाधर्म के उपदेशक, भगवान महावीर वास्तव में हम सबके लिए पूज्य है।' राणा सिद्धार्य
राजा सिद्धार्थ विदेह देश में अवस्थित कुण्डनपुर नगर के शासक हैं। उनमें सौम्पयं, धैर्य, दानशीलता, प्रजावत्सलता, स्वास्थ्य, पराक्रम, यश, सम्पत्ति इत्यादि गुण विद्यमान है । वह श्रेष्ठ धनुर्धर हैं । पुरुषार्ष-चतुष्टय के शाता हैं। वर्णाश्रमव्यवस्था का सम्यक प्रबन्ध करने में रुचि रखते हैं । सम्पूर्ण विवानों से सम्पन्न है एवं राजनीतिक भी हैं। उनमें मानवक्ष प्रबुख है। रानी प्रियकारिणी की स्वप्नाबली का मयं बताने में उन्हें किसी की सहायता उपेक्षित नहीं है । शत्रुषों का संहार करने वाले वह राजा अपनी रानी प्रियकारिणी से प्रत्यधिक प्रेम करते हैं, और उसकी सुरक्षा हेतु प्रयत्न भी करते हैं ।
१. बीरोदय, १२।२२-४. २. बही, ६१-१७, १०१२-२१ ३. वही, ६॥२४, ३३-३८ ४. वही, ३॥१.१४ ५. बही, ४१३७-६२