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महाकवि मानसागर के काय-एक अध्ययन "पावानगरोपवने मक्तिश्रियमनुगतो महावीरः । तस्या वर्मानुसरन् गतोऽभवत् सर्वया धीरः॥"
-वीरोदय, २०२१ कात्तिक मास की चतुर्दशी तिथि की रात्रि को वीरभगवान् ने मुक्ति लक्ष्मी का वरण किया। ५.. इस काव्य के नायक लोकविश्रुत भगवान महावीर है । महावीर में एक नायक के सभी गुण विद्यमान हैं । वह परमधार्मिक, अद्भुत सौन्दर्यशाली, सांसारिक राग से दूर, जन-धर्म के उद्धारक, दुःखियों का कल्याण करने वाले हैं। कानपुर के राजा सिद्धार्थ मोर रानी प्रियकारिणी को महावीर के पिता-माता होने का गौरव प्राप्त है।' । 'वीरोदय' में विविध-स्थलों पोर वृत्तान्तों का भी यथास्थान वर्णन मिलता है। इस काव्य में कवि ने कण्डनपुर के वैभवपूर्ण वर्णन से हमारे समन एक समृड नगर की झांकी प्रस्तुत कर दी है। समा का भी सुन्दर वर्णन यवास्थाम किया गया हैं। 'वीरोदय' में कवि ने हिमालय, विवा' और सुमेह' इन तीनों पर्वतों का प्रासंगिक उल्लेख किया है । 'पीरोग्य' का सर्वाधिक मनोहारी उसका पातु-वर्णन है । कवि ने वर्षा, बसन्त,गीत,' प्रीष्म, इन पाँच ऋतुमों का वर्णन इस काम्य में किया है । बोरोदय' में भगवान महावीर के जन्माभिषेक का बड़ा दिव्यवर्णन कवि ने प्रस्तुत किया है। सर्वप्रथम देवगणों ने पोर तत्पश्चात् राजा सिखाप ने भगवान् का बन्माभिषेक घूम-धाम से किया।
१. वीरोक्य, ७३८ २. वही, २०२१-५० ३. बही, ७।२२-१३ ४. वही, २७ ५. वही, २८ ६. वही, २२, ३, ७॥१७-२२ ७. वही ४१२-२६ ८. वही, ६-१२-३से १. वही, ११.४५ १.. बही, १२।१-३१ ११. ही, २११-२० १२. बही,