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महाकवि ज्ञानसागर के काम्य-एक अध्ययन
महाकच्छ की स्तम्बकगुच्छनगर की यात्रा, भद्रमित्र की रत्नद्वीप यात्रा,२ नायकाभ्युदयः इत्यादि का वर्णन यथास्थान किया है। जैन-धर्म का काव्य होने के कारण इसमें मुनि-वर्णन भी इष्टिगोचर होता है। पात्रों के पूर्वजन्मों पोर पुनर्जन्मों और पुनर्जन्म के वृत्तान्त भी इसमें यथास्थान हैं ।५ काव्य के प्रष्टमसगं में जैन-धर्म का विस्तृत उपदेश प्रस्तुत किया गया है, और नवम सर्ग में चक्रायुध के उग्र तपश्चरण का वर्णन है। ७. 'श्रीसमुद्रदत्तचरित्र' में शान्त, रोद्र, वत्सल रसों एवं भक्तिभाव का वर्णन मिलता है। इस काव्य में प्रङ्गी रस का पद शान्तरस ने ही प्राप्त किया है। ८. इस काव्य में कवि ने पंचसन्धियों का भी निर्वाह करने का प्रयास किया है। प्रथम सर्ग में भद्रमित्र का उल्लेख कान्य की 'मुख-सन्धि' है। तृतीय सर्ग में ममित्र को चारित्रिक विशेषतामों का ज्ञान होता है,'' यह काम्य को 'प्रतिमुखसम्धि है। सत्यघोष नामक राजा के मंत्री से अपना धन पाकर भद्रमित्र एक मुनिराज के दर्शन मोर उपदेश से प्रभावित होता है; १२ यह काम्य की 'गर्भसन्धि' है
. १. भोसमददत्तचरित्र, २०१८:१६
२. वही, ३॥१५-१७ १. वही, ६।२६-३० ४. (क) वही, ४१६
(ब) वही, ५१२७ ५. (क) वही, १६३०
(ख) वही, ४६ (ग) वही, ५११६ (घ) वही, ६।१४ (छ) बही, ४१२६ (च) बहो, ४॥३२ (घ) वही, ४१३३
वही, ७।१-२४, ९१-२९ ७. वही, २३३२ ८. वही, ३१० १. वही, २६ १०. वही, १-२६-३१ ११. वही, ३३१.४, ७-६, १४, १५, २७, ३१, ११ १२. की,
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