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महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एकलव्यवन
हो जाती है, अत: उसे अपदस्थ कर दिया जाता है । भद्रमित्र सत्य के बल पर अपने अन्य तीन जन्मों में भी सुखपूर्वक समय व्यतीत करता है । तत्पश्चात् अपने ऊपर भी विजय प्राप्त करके, कैवल्यज्ञानलाभ करता है । भद्रमित्र की इसी विजय द्वारा कवि ने नायकाभ्युदय दिखाया है। १३. प्रस्तुत काव्य के कवि ने दो नाम रखे हैं :-१. भद्रोदय और २. श्रीसमद्रदत्तचरित्र । ये दोनों ही नाम काव्य के नायक के नाम पर आधारित हैं। भद्रोदय का तात्पर्य है भद्र (मित्र) की उन्नति । काव्य में भवामित्र के भौतिक एवं माध्यात्मिक . दोनों ही प्रकार से प्रभ्युदय प्राप्त करने का वर्णन है। इसलिये इस काव्य का भद्रोदय नाम सार्थक है । भद्रमित्र का दूसरा नाम समुद्रदत्त भी है। काव्य में उसके चार जन्मों का वर्णन मिलता है। चारों ही जन्मों में उसकी चारित्रिक विशेषतामों पर कवि ने प्रकाश डाला है, इसलिए इस काव्य का 'श्रीसमुद्रदत्तचरित्र' नाम भी सार्थक है।
. 'श्रीसमुद्रदत्तचरित्र' सम्बन्धी उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस कान्य में कवि ने सर्गों का नामकरण नहीं किया है। प्राकृतिक वर्णन के नाम पर इसमें केवल कवि ने विजयाध-पर्वत का ही वर्णन किया है। स्थान-स्थान पर राजामों द्वारा जन-मुनियों से दीक्षा-प्राप्ति का वर्णन है और काव्यों के पात्रों के कई जन्मों का वर्णन कवि ने किया है। फलस्वरूप काव्य में प्रवाहहीनता और नीरसता मा गयी है । इतना होने पर भो 'श्रीसमुद्रदत्तचरित्र' को महाकाव्य मानने में हमें प्रापत्ति नहीं होनी चाहिए । क्योंकि महाकाव्य के काव्य-शास्त्रियों द्वारा बताये गए एक-दो लक्षणों को छोड़कर शेष सभी लक्षण इसमें घटित होते हैं। रयोदय-चम्पू
कवि की पांचवी कृति 'दयोदय' है। कवि ने इस पुस्तक के नाम के मार्ग 'चम्पू' शब्द जोड़ दिया है। प्रतः कषि के कथन को स्वीकार करते हुए हमें भी इसे 'चम्पू' मान लेना चाहिए । स्पष्टीकरण के लिए -काव्यशास्त्रियों द्वारा बताई गई 'चम्पू-काव्य' की विशेषताएं कहां तक इस काव्य में सष्टिगोचर होती हैं-इसकी जानकारी के लिए बम्पूकाव्य की विशेषताएं और उसके प्राधार पर 'बयोदय' की पालोचना प्रस्तुत है :
अनेक काव्यशास्त्रियों पोर चम्पूकाव्य का प्रणयन करने वाले कवियों ने अपने-अपने तरीके से 'चम्पूकाव्य' के लक्षण बताए हैं। उनके बताए गए लक्षणों की ही सारभूत विशेषताएं इस प्रकार हैं :१. गद्य-पद्य-मिश्रित
चम्पू-काव्य वह काव्य होता है, जिसमें गद्य-पद्य दोनों का व्यवहार मेता है। पम्पू का यह लक्षण भ्रामक प्रतीत होता है । क्योंकि गद्य-पच का मिश्रण नाटक कपासाहित्य में भी मिलता है । साथ ही चम्मू-कान के मतिरिक्त. पच-पच मिति काव्य के दो पोर भी भेव हैं: