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काव्यशास्त्रीय विधाएं
१३१ ६. अन्य महाकाव्यों की भांति 'सदर्शनोदय' में भी विविध-स्थलों और वृत्तान्तों का स्थान-स्थान पर उल्लेख मिलता है। अंगदेश,' चम्पापुरी और अंगदेश के ग्रामों का कवि ने प्रसंगानुकूल वर्णन किया है। वसन्तवर्णन प्रभातवर्णन५, रात्रिवर्णन', उद्यानविहारवर्णन , नायक-नायिका प्रेमवर्णन, विवाहवर्णन और सुदर्शनकुमार की उत्पत्ति का वर्णन' कवि के प्रकृति-प्रेम एवं वर्णन-कौशल के परिचायक हैं।
'सुदर्शनोदय' में हमें कुछ संवाद भी दृष्टिगोचर होते हैं । यथा-(क) वृषभदास-बितरति-संबाद १, (ख) वृषभदाम-मुनिराज-संवाद,' २ (ग) वृषभदास-सागरदत्तसंवाद,१३ (घ) वषभदास-मुनिराज-संवाद ४ प्रादि ।
'सदर्शनोदय' में मुनियों ५ एवं जिनदेव की मूर्ति'६ का भी वर्णन मिलता है । कई स्थलों पर कवि ने जैनधर्म के कुछ सारभूत-तत्त्वों का वर्णन अपने काव्यों में किया है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि 'सुदर्शनोदय' में कवि ने विविधस्थलीय-वर्णन, प्राकृतिक-पदार्थ-वर्णन, विविध-वृत्तान्त-वर्णन और स्त्री-पुरुषों के मनोवैज्ञानिक चित्रण द्वारा प्रपनी सूक्ष्म-दर्शन-शक्ति का अद्भुत परिचय दिया है। ७. सुदर्शनोदय' में जिन रसों एवं भावों का वर्णन किया गया है, वे इस प्रकार
१. सुदर्शनोवय, १।१५-२४ २. वही, १०२५-३७ ३. वही, १।२०-२२ ४. वही, ६ प्रारम्भ के २ गीत, १-४ ५. वही, ५ प्रथम गीत । ६. वही, ७ श्लोक के बाद का दूसरा गीत । ७. वही, ६।२-४ ८. वही, ३१३५ १. वही, ३४८ १०. बही, २।२६-५०, ३१.१० ११. बही, २०१३-२३ १२. वही, २।२६-४० १३. वही, ३४५-४७ १४. वही, ४।५-१२ १५. वही, ४११, १६-३८ १६. वही, ५ पृ. ८२ का गीत ।