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महाकवि ज्ञानसागर के काव्य - एक प्रध्ययन
का खूब विस्तार से वर्णन है। इसके प्रतिरिक्त काव्य-शास्त्रियों द्वारा स्वीकृत महाकाव्य की सगसम्बन्धी, भावपक्षसम्बन्धी, कलापक्षसम्बन्धी, चरित्रसम्बन्धी सभी विशेषतायें इसमें दृष्टिगोचर होती हैं। साथ ही सहृदय को प्रभावित करने में भी यह काव्य पूर्ण समर्थ है । अतः हम निर्विवाद रूप से इसको महाकाव्य कह सकते हैं । सुदर्शनोदय -
'सुदर्शनोदय' के परिशीलन से भी यह स्पष्ट हो जाता है कि यह एक महाकाव्य है, तथापि विद्वानों और सहृदय सामाजिकों की दृष्टि के लिए; महाकाव्य के लक्षणों के माधार पर किया गया सुदर्शनोदय का परीक्षण प्रापके समक्ष प्रस्तुत है
१. 'सुदर्शनोदय' को कथावस्तु नो सगों में निबद्ध है ।
२. इस काव्य के प्रारम्भ में मंगलाचरण के रूप में कवि ने बीरभगवान् की स्तुति की है
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"वीरप्रभुः स्वीयसुबद्धिमाबा भवाब्धितीरं गमितप्रजाबान् । सुधीवराराध्यगुणान्वया वाग्यस्यास्ति नः शास्ति कवित्वगावा ॥" - सुदर्शनोदय, १1१
३. 'सुदर्शनोदय' की कथा का प्राचार हरिषेण कृत 'बृहत्कथाकोश' का 'सुभगगोपाल' नामक कथानक है ।
४. इस काव्य में भी कवि ने मोक्ष रूप पुरुषार्थ की सिद्धि उपस्थित की है। काव्य के अन्त में उन्होंने कहा है :
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"नदीपो गुणरत्नानां जगतामेकदीपकः ।
स्तुतां जनतयाऽधीतः स निरंजनतामधात् ॥”
- सुदर्शनोदय ६।८७
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५. इस काव्य का नायक सेठ सुदर्शन है। सुदर्शन में घीरप्रशांत नायक के सभी गुण हैं । वह चतुर, ' परमधार्मिक, वैश्यकुलोत्पन्न, ३ मनोहर प्राकृति, सुकुमारहृदय और दृढ़ व्यक्तित्व वाला है। चम्पापुरी के सेठ वृषभदत्त और जिनमति सुदर्शन के माता-पिता हैं।
१. सुदर्शनोदय, ५।११-२० २. वही, ५ प्रारम्भ के गीत
३. वही, ३।१
४. वही, ३।१५
५. वही, ८।१४-१६
६. वही, ५।१६ - २० ७२१-३०, ६२८ ७. वही, ३।१-१६