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महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत काव्य-ग्रन्थों का स्रोत
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संक्षिप्त है, किन्तु दयोदयचम्पू' में यह विस्तृत है । 3
(घ) 'वृहत्कथाकाश' में वर्णन है कि मृगसेन को मरा हुआ देखकर घंटा घीवरी ने उसके भार्ग का अनुसरण करने के लिए सर्प के बिल में हाथ डाला, किन्तु 'दयोदयचम्पू' में वर्णन है कि जैसे ही घण्टा ने पति का अनुसरण करने का विचार निया, वैसे ही जिस सर्प ने मृगसेन को डसा था, उसी ने घंटा को भी उस लिया । *
(ङ) 'वृहत्कथाकोश' में उल्लिखित है कि गुरणपाल ने गोविन्द से कहा कि वह आवश्यक कार्य से सोमदत्त को उसके घर भेज दे, किन्तु 'दयोदयचम्पू' में वह सोमदत्त से पूछता है कि प्रावश्यक कार्य से किसको घर भेजा जाय, लब सोमदत्त कह देता है कि मैं ही चला जाऊँगा । ६
(च) 'बृहत्कथाकोश' में वर्णन है कि विषा और सोमदत्त के विवाह का कार्य जिस दिन सम्पन्न होना था, गुणपाल उसी दिन अपने घर म्रा धमका; और अपने पुत्र पर क्रोधित हुप्रा, ७ किन्तु 'दयादयचम्पू' में जब गुणपाल को विषा और सोमदत्त के विवाह का समाचार ज्ञात होता है, उस समय वह गोविन्द ग्वाले के घर में ही होता है । गोविन्द वाले के जिज्ञासां करने पर ऊपरी तौर पर प्रसन्नता प्रकट करके उसे उन दोनों के विवाह की सूचना देता है । घर लौटकर पुत्र पर पत्नी से बात बनाते हुए कहता है कि तुम लोगों से तो इस विवाह के सम्बन्ध में स्वीकृति मांगी थी, कार्य सम्पन्न करने को नहीं कहा था। 5 (छ) 'बृहत्कथाको' में नागमन्दिर वृत्तान्त के पर अपनी व्याकुलता का कारण बता देता है, नागमन्दिर के बाद का है । १०
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पहले ही गुणपाल, गुरणश्री के प्राग्रह किन्तु 'दयोदयचम्पू' में यह वृत्तन्ति
(ज) 'बृहत्कथाकोश' में वर्णन है कि गुणश्री पुत्री को निर्देश देती है कि ये लड्डू केवल अपने पति को ही देना, अन्य किसी को नहीं, ११ किन्तु ' दयोदयचम्पू' में
१. बृहत्कथाकोदा, ७१।१५- २३
२. दयोदयचम्पू, २ श्लोक ७ के बाद से श्लोक २३ के पूर्व तक ।
३. बृहत्कथाकोश, ७२/७६
४. दयोदयचम्पू, २ श्लोक ३२ के पूर्व से श्लोक ३३ के बाद तक ।
५. बृहत्कथाकोश, ७२।५७
६. दयोदयचम्पू, ४ श्लोक के बाद के गद्यभाग ।
बृहत्कथाकोश, ७२|७६ = १
6)
दयोदयचम्पू ५ प्रारम्भ के गद्यभाग एवं १ से ६ श्लोक तक ।
६. बृहत्कथाकोश, ७२८४-८७
१०. दयोदयचम्पू, ६ प्रारम्भ का गद्यभाग एवं १ से ३ श्लोक तक । ११. बृहत्कथाकोश, ७२।६६-६७