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चतुर्थ अध्याय महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-काव्य-ग्रन्थों की
___ काव्यशास्त्रीय विधाएँ (क) काव्य एवं काव्यविधाएँ : एक संक्षिप्त परिचय काव्य
'काव्य' शब्द कव धातु में ण्यत् प्रत्यय के योग मे निष्पन्न हुअा है। 'कव' का तात्पर्य है-- वर्णन करना । इस प्रकार काव्य शब्द का अर्थ है--कविकृत किसी पदार्थ का सुन्दर वर्णन।
किमी भी व्यक्ति के स्वरूप का ज्ञान करने के लिए हम उसके नख-शिख का मानोवन करते हैं। इसी प्रकार काव्य का क्या स्वरूप है ? यह जानने के लिए हमें उसके प्रमुख अंगों के विषय में जानना चाहिए । लीजिए, अापके समक्ष काव्य-पुरुष के अंगों का परिचय प्रस्तुत है :शब्द :
कवि को किसी पदार्थ का वर्णन करते समय सर्वप्रथम शब्दावली का सहारा लेना पड़ता है । वर्णन में प्रयुक्त किये जाने वाले शब्द सार्थक होने चाहिएं। अर्थ :
कवि जब किसी पदार्थ का वर्णन करता है तो उस वर्णन का कुछ न कुछ प्रर्ष अवश्य निकलता है । जब चाहे यह अर्थ पाठक का मनोरञ्जन करे या उसे बौद्धिक व्यायाम कराये। अलंकार :
पुरुष प्रपने को सुसज्जित करने के लिए, अपनी समृद्धि-बहुलता को प्रकट करने के लिए और स्त्रियां प्राने सौभाग्य को सूचित करने के लिये कटक कुण्डलहारादि अलंकारों का उपयोग करती हैं। इसी प्रकार कवि अपने पाण्डित्य-प्रदर्शन के लिए प्रानो कविता-कामिनी को अनुप्रास, उपमा, श्लेष इत्यादि से सुसज्जित करता है। एक यशस्वी व्यक्ति के लिए कुण्डलादि प्रावश्यक नहीं, इसी प्रकार कवि के काव्य का भावपक्ष प्रबल होने पर काग्य के लिए उपमा-अनुप्रासादि की आवश्यकता नहीं है।