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महाकवि ज्ञानसागर के काव्य- एक अध्ययन
अंगदेश में स्थित चम्पापुरी में धाईवाहन नामक राजा राज्य करता था । उसकी रानी का नाम ग्रभया था। इसी नगर में सेठ ऋषभदास ग्रपनी स्त्री प्रद्दासी के साथ रहता था। उनका सुभग नाम का एक ग्वाला था । एक बार सेठ ने देखा कि सुभग ग्वाला प्रत्येक कार्य करने के पूर्व 'नमोऽर्हते' मन्त्र का स्मरण करता है। उनसे उसको डाटा पौर मन्त्रोच्चारण का कारण पूछा। तब ग्वाले ने सेठ से कहा - मघ के महीने में भयानक जंगल में, सन्ध्या के समय एक दिगम्बर मुनि को मैंने देखा । उनकी वन्दना के बाद घर प्राया । प्रातःकाल यति लेकर उनके पास गया। मैंने परने हाय गर्म करके बार-बार उनके शरीर का स्पर्श किया। सूर्योदय होते ही मुनि ने पैंतीम प्रक्षरों का उच्चारण करने के बाद प्राकाशगार्ग में विहार किया। मैं उन्हीं अक्षरों का स्मरण किया करता हूँ । अन्त में सेठ ने उसे मन्त्रोच्चारण की प्राज्ञा दे दो ।
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रात्रि समाप्त होने पर मैं
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एक बार वह ग्वाला नदी को गया । वहाँ वह अन्य ग्वालों के साथ क्रीड़ा करने लगा | उसी समय एक खेत का रखवाला घबराता हुआ उसके समीप घाया और बोला कि तुम्हारी गायें नदी के दूसरे तट की ओर गम्भीर जल में पहुँच गई हैं। यह सुनकर कीड़ा छोड़कर वह मंत्र का स्मरण करके नदी में कूद पड़ा। जल के मध्य में एक नुकीला ठूंठ था, जो उसके हृदय में चुभ गया। पीड़ा को भूलकर उसने अन्त में निदान किया कि मंत्र के उच्चारण के फल में मेरा जन्म उसी कुल में हो ।
सुभग गोर के जीव के जन्म लेने के पूर्व प्रददामी ने मोते समय पाँच स्वप्न देखे - विशाल पर्वत, कल्पतरु, अमरेन्द्र गृह, विशालसमुद्र और शोभायुक्त अग्नि । प्रातःकाल अपने पति के पास जाकर उसने अपने स्वनों के विषय में बताया दोनों परस्पर परामर्श करके जिनमन्दिर को गये। वहाँ एक मुनि ने स्वप्नों के परिणाम के विषय में पूछने पर उन्होंने बनाया कि तुम्हारा पुत्र पर्वत देखने के कारण सुधीर, कल्पतरु देखने के कारण दानी, अमरेन्द्र का गृह देखने के कारण देववन्द्य, समुद्र को देखने के कारण गंभीर और अग्नि को देखने के कारण पापों को नष्ट करने वाला होगा । प्रनेक गुरणों से युक्त तुम्हारा पुत्र अन्त में मोक्षपद को प्राप्त करेगा । यह सुनकर वे गुनि को प्रणाम करके प्रसन्नतापूर्वक घर लौट पाये । सुभगगोप के जीव ने सेठानी के गर्भ में प्रवेश किया ।
पौष मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि, बुधवार के दिन, मर्हद्दासी ने पुत्र को जन्म दिया । सेठ के घर में बड़ी चुम-धाम से पुत्र जन्मोत्सव सम्पन्न किया
गया ।
जन्म के ग्यारहवें दिन प्रहंदासी पुत्र के नामकरण के लिए जिनमन्दिर गई। वहाँ एक मुनिराज ने बालक का नाम सुदर्शन रखा। जब सुदर्शन आठ वर्ष का हुधा, तब सेठ पोर सेठानी उसे विद्या दिलाने के लिये एक मुनिराज के पास गये ।