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महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-काव्य-प्रन्यों के स्रोत
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इस प्रकार एक मछली को दया के कारण चार बार मुक्ति देने से सोमदत्त के जन्म में मुगसेन धीवर ने भी चार बार दया प्राप्त की।' पारापनाकपाकोश में परिणत मृगसेन धीवर की कथा
प्रबन्ती प्रदेश में शिरीष नामक ग्राम में मृषसेन नामक मछुपा रहता था। एक बार कन्धे पर जाल लटकाकर वह मछलियां पकड़ने के लिए शिप्रा नदी को गया। मार्ग में उसने यशोपर नामक मुनिराज के दर्शन किए । उनको देखकर जाल इत्यादि बोड़कर उसने उन्हें भक्तिपूर्वक प्रणाम किया। उसने किसी नियम के पपदेश हेतु निवेदन किया। मुनि ने उसकी हिंसात्मक वृत्ति का विचार करके उसके दयापूर्वक कहा कि हे महाभाग ! आज से तुम्हारे जाल में जो मछली सबसे पहले पाए उसे छोड़ देना । इस नियम के साथ ही तुम पंचनमस्कार मन्त्र का भी ध्यान करना । मुनि का वाक्य सुनकर मुगसेन शीघ्र ही शिप्रा नदी पर पहुँचा प्रौर व्रत को स्मृतिपूर्वक जाल को जल में डालकर उसने एक बड़ी मछली पकड़ी। मुनि के सम्मत की गई प्रतिज्ञा के अनुसार उसने मछली को चिह्नित करके पुनः जल में छोड़ दिया। इसके बाद उसने जाल फैलाया तो वही मछली जाल में बार-बार भाई। इस प्रकार जब उसने पांच बार मछली को मुक्त किया, तब तक सूर्यास्त हो चुका था। मृगसेन गुरुबचन को स्मरण करता हुमा घर की भोर चला।
अपने पति को खाली हाथ प्राता देखकर उसकी घण्टा नाम की स्त्री ने उस पर क्रोध प्रकट किया पोर झोपड़ी में प्रवेश करके शीघ्र ही द्वार बन्द कर दिया।
तत्पश्चात् मृगसेन बाहर ही पंचनमस्कार मन्त्र का स्मरण करता हुमा एक पुराने काठ पर सो गया। रात्रि में उसमें से एक सर्प ने निकलकर उसके प्राण हर लिये । प्रातःकास घण्टा उसे मरा हुमा देखकर अत्यधिक शोकाकुल हो गई और जिस पवित्र व्रत का पालन इसने किया, मैं भी उसी का पालन करूंगी। अगले जन्म में भी यह मेरा स्वामी हो ऐसा निश्चय करके उसने मुगसेन के साथ ही अग्नि में प्रवेश कर लिया।
विशाला नगरी में विश्वंभर नामक राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम था विम्बगुणा । उसी नगर में गुणपाल नामक सेठ धनश्री नामक सेठानी के साथ रहता था। उनकी सबन्धु नाम की पुत्री थी। उस धनश्री के गर्भ में मगसेन के जीव ने प्रवेश किया। राजा विश्वंभर ने अपने मन्त्रिपुत्र नर्मधर्म के लिए गुणपाल से उसकी पुत्री सुबन्धु की याचना की। किन्तु नर्मधर्म के दुराधरण से भयभीत गुणपाल के हृदय में सबन्धु को देने का साहस नहीं हुमा सर्वस्वनाश रोकने की इच्छा से गुणपाल ने अपनी गमिणी स्त्री को अपने मित्र श्रीदत्त सेठ के घर ठहरा दिया और पुत्री को लेकर चुपचाप कौशाम्बी नगर में पहुंच गया।
१. हरिषेणाचार्यविरचित बृहत्कथाकोशः ७२वीं कया।