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महाकवि मानसागर के संस्कृत-काव्य-प्रन्थों के स्रोत (घ) वृहत्कथाकोश' में चक्रायुष के अतिरिक्त वज्रायुध एवं रत्नायुध के वृत्तान्त भी है.' लेकिन 'श्रीसमुद्रदत्तचरित्र' में इनका केवल उल्लेख है । पाराषनाकथाकोश पोर श्रीसमुद्रदत्तचरित्र
'पाराषनाफयाकोश' में वर्णित श्रीभूतेः कथा' पौर श्रीज्ञानसागर विरचित 'श्रीसमुद्रदत्तचरित्र' में निम्न भिन्नतायें दृष्टिगोचर होती है :(क) 'माराधनाकथाकोश' में कथा केवल राजा द्वारा श्रीभूति के पण्डित होने पौर तत्पश्चात् उसके मर जाने तक है। 'श्रीसमुद्रदत्तचरित्र' में श्रीभूति से सम्बन्धित सभी पात्रों के जन्म-जन्मान्तरों के भी वर्णन हैं।" (ख) 'पाराषनाकवाकोश' में नायक का नाम समुद्रदत्त है,५ जवकि 'श्रीसमुद्रवत्तचरित्र' में इसका नाम भद्रमित्र है।' (ग) 'पाराधनाकपाकोश' में रत्नों की संख्या पांच है, जबकि 'श्रीसमुद्रदत्तपरिव' में सात है। (घ) 'माराधनाकयाकोश' में समुद्रदत्त के मित्रों के समुद्र में डूब जाने पर समुद्रदत्त के बीवित रह जाने का वर्णन है। परन्तु 'श्रीसमुद्रदत्तचरित्र' में यह वर्णन नहीं है। () 'पारापनाकथाकोश' में वर्णन है कि समुद्रदत्त ने रत्न ठग लिये जाने पर छः महीनों तक पुकार की पी, लेकिन 'श्रीसमुद्रदत्तचरित्र' में समय की किसी निश्चित अवधि का उल्लेख नहीं है। (च) 'पारापनाकथाकोश' में रामबत्ता चिह्न, अंगूठी मोर पसोपवीत को क्रमशः भिजवाती है, लेकिन श्रीभूति की स्त्री यज्ञोपवीत देखने पर ही रल देती है। किन्तु 'मीसमुद्रदत्तचरित्र' अनुसार रानी तीनों वस्तुएं एक साथ भिजवाकर रत्न मंगा सेती है। १. बृहत्कयाकोश, ७८१८६.२४५ २. श्रीसमुत्पत्तचरित्र, ६।२४, २६ ३. पारापनाकपाकोश, २७।१-३१ ४. बीसमाबतचरित्र, तीसरे से छठे सगं तक ५. मारापनाकपाकोश, २७।४ ६. श्रीसमुद्रातचरित्र, १॥३० ७. पारापनाकवाकोश, २७.५ ८. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ३॥१से 1. भारापनाकपाकोश, २७॥६॥ १०. वही, २७।१० ११. वही, २७॥१७-२३ १२. वही, २७२-1