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महाकवि मानसागर के संस्कृत-काम्य-प्रमों के लोत
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मुनि से विद्या प्राप्त करने के बाद सुदर्शन सोलह साल का युवक हो गया, तब सस्त नर-नारी उससे प्रतिशय प्रेम करने लगे।
___नगर में भ्रमण करते हुए सुदर्शन की मंत्री गुणों से सम्पन्न कपिल ब्राह्मण से हो गई । एक दिन वे दोनों मित्र जब बाजार मार्ग से चल रहे थे, तब उन्होंने एक सुन्दरी बाला को देखा। सुदर्शन ने कपिल से उस रूपवती बाला का परिचय पूछा । कपिल ने बताया कि यह सागरदत्त सेठ की सागरसेना नाम की स्त्री से उत्पन्न मनोरमा नाम की कन्या है। उस बाला को देखकर और उसका परिचय पाकर सुदर्शन काम के वशीभूत हो गया। कपिल ब्राह्मण ने सुदर्शन को स्त्रियों के लक्षणों का उपदेश दिया। अपने मित्र के वचन सुनकर और उसकी प्रशंसा करके व्याकुल सुदर्शन घर चला गया। मनोरमा भी बार-बार सुदर्शन का स्मरण करके व्याकुल होने लगी।
- सुदर्शन को अवस्था देखकर सेठ वृषभदास ने उसका विवाह कराने का विचार किया। तब उसे ध्यान पाया कि एक बार द्यूतकीड़ा के समय सेठ सागरदत्त ने कहा था कि यदि मेरी पुत्री उत्पन्न हुई तो उसका विवाह तुम्हारे पुत्र से किया जायगा। जैसे ही सेठ वषमदास मनोरमा को अपने पुत्र के लिए मांगने का विचार कर रहा था कि उसी समय सेठ सागरदत्त वहां प्रा पहुँचा। ऋषभदास की इच्छा जानकर सेठ सागरदत्त प्रसन्नतापूर्वक ताम्बूल लेकर श्रीधर ज्योतिषी के पास पहुंचा मोर उससे विवाह हेतु लग्न पूछा । श्रीधर ने बताया कि वैशाखमास में, शुक्लपक्ष में, पञ्चमी तिथि को रविवार के दिन, मिथुन लग्न ही उत्तम लग्न है।
तिथि का निश्चय हो जाने पर दोनों सेठों ने पुत्र-पुत्री के विवाह की तैयारियां की। मध्याह्न के समय उन दोनों के पुत्र एवं पुत्री का परस्पर विवाह सम्पन्न हो गया। विवाह के पश्चात भोगविलास करते हुए उनका सुकान्त नाम का पुत्र हुमा।
एक बार समाधिगुप्त नामक मुनि अपने संघ सहित उपवन में माये । सेठ वर्षभदास भी उनके दर्शन करने के लिए गया। ऋषभवास के पूछने पर उन्होंने उसे धर्म का स्वरूप बताया। मुनि के वचन सुनकर सेठ ने घर पाकर सुदर्शन को लोकम्यवहार की शिक्षा दी और अपने वन जाने की इच्छा भी प्रकट कर दी। पुत्र ने भी तप करने की इच्छा प्रकट की तो सेठ ने उसे कुल का भार ग्रहण करने को कहा । पुत्र को समझाकर सेठ और सेठानी समापिगुप्त को प्रणाम करके तपस्या के पश्चात् देवलोक को गये।
पिता के बाद सुदर्शन सुखपूर्वक दिवस व्यतीत करने लगा। कपिस भट्ट की स्त्री कपिला ने जब सुदर्शन के सौन्दर्य के विषय में सुना तो मोहित हो गई। अपनी सखी के पंचम राम गाने पर भी उसका मन शान्त नहीं हुमा। कपिलाको विरह वेदना को जानकर सती ने मार्ग में जाते हुए सुदर्शन को देखकर कपिला को उसका दर्शन करवाया। कपिना ने अपनी सती सुवर्शनको पर ले पाने के लिए