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महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत काव्य-ग्रन्थों के संक्षिप्त कथासार
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दूसरे दिन नागपंचमी के अवसर पर सोमदत्त को बुलाकर मन्दिर में उसके हाथों पूजन सामग्री भेजने के लिए कहा । सोमदत्त पूजन सामग्री ले जाने के लिए तैयार हो गया । सोमदत्त को तैयार करके गुणपाल मन्दिर के समीप रहने वाले चाण्डाल के समीप गया। चाण्डाल को धन देकर सोमदत्त का वध करने के लिए तैयार कर लिया। उसने चाण्डाल को समझाया कि जो भी पुरुष पूजन सामग्री लेकर इधर से जाय, उसे मार डालना |
सोमदत्त जब पूजन सामग्री लेकर जाने लगा तो रास्ते में उसकी भेंट गेंद खेलते हुये महाबल से हो गई । महाबल ने अपने स्थान पर गेंद खेलने के लिए बलपूर्वक उसे नियुक्त कर दिया और स्वयं उसके हाथ से पूजा की थाली लेकर मन्दिर की प्रोर चल पड़ा। रास्ते में ही चाण्डाल ने तलवार से महाबल का वध कर दिया ।
शीघ्र ही एक नवयुवक के मारे जाने का समाचार सारे नगर में फैल गया ।
हुमा, किन्तु घर में माकर समाचार सुनकर दुःखी हो
गुणपाल इस समाचार को सुनकर पहले तो बहुत प्रसन्न सोमदत्त को जीवित देखकर और महाबल की मृत्यु का गया । गुणश्री और विषा को भी बहुत दुःख हुआ ।
षष्ठ लम्ब
सोमदत्त के स्थान पर महाबल के मारे जाने पर गुणपाल खिन्न रहने लगा | उसको चिन्तित देखकर पुत्रशोक से दुःखी मन वाली गुणश्री ने अपने पति के पास जाकर उसके दुःख का कारण पूछा। पहले तो गुणपाल ने अपनी चिन्ता का कारण बताना स्वीकार नहीं किया; किन्तु गुणश्री के बहुत प्राग्रह करने पर उसने बतलाया कि वह सोमदत्त को मारने के लिए प्रयत्नशील था; किन्तु उसके स्थान पर उसका ही पुत्र मारा गया ।
गुणश्री के प्राश्चर्यचकित होने पर गुणवाल ने सारा वृत्तान्त सुनाया । सोमदत्त को मारने के दृढ़ निश्चय से भी उसे अवगत कराया। पहले तो गुणश्री अपने पति के इस निर्मम निर्णय का विरोध करती रही, पर बाद में वह भी गुणपाल की बात में आ गई और उसने सोमदत्त को मारने का दायित्व स्वयं ही ले लिया ।
एक दिन उसने सबके खाने के लिए तो खिचड़ी तैयार की और सोमदत्त को मारने के लिए विष से युक्त चार लड्डू बना दिये । इतने में ही उसे शौच जाने की आवश्यकता हुई, तो गुणश्री ने विषा को पाकशाला के कार्य में लगा दिया और स्वयं जंगल को चली गई ।
इतने में ही गुरपाल रसोई की तरफ प्राया भोर विषा से बोला कि मुझे राजकार्य से शीघ्र जाना है, भूख भी लगी है, प्रतएव यदि खाना नहीं बना है तो