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महाकवि मानसागर के संस्कृत-काव्य.प्रन्यों के स्रोत पर सुलोचना ने अपने और राजकुमार के पूर्वभवों का वृत्तान्त सुनाया, जो इस प्रकार है :
विदेह क्षेत्र में पुष्कलावतो देश की पुण्डरोकिणी नगरी में प्रजापान नामक राजा राज्य करता था। उस राजा का कुबेरमित्र नाम का एक राजसेठ था। बनवती इत्यादि उसकी बत्तीस स्त्रियां थीं। उस सेठ के महल में सेठ को प्रिय लगने वाला रतिवर नाम का कबूतर प्रपनी रतिषेणा नाम की कबूतरी के साथ सुखपूर्वक रहता था। जयकुमार ही पूर्वजन्म का रतिवर था और सुलोचना ही रतिषणा थी।
कुबेरमित्र के पुत्र का नाम कुबेरकान्त था। कुबेरकान्त को भोगविलास की सामग्री एक कामधेनु से प्राप्त हो जाती थी। उसका प्रियदत्त नाम का प्रत्यधिक प्रिय मित्र था । कुवेरकान्त के माता-पिता ने ज्ञात कर लिया कि वह एक ही कन्या से विवाह करना चाहता है। कुबेरमित्र ने अपने पुत्र का विवाह अपनी बहिन की पुत्री प्रियदत्ता से कर दिया। राजा प्रजापाल ने अपने पुत्र लोकपाल को पुण्डरीकिरणो का राजा बना दिया और स्वयं मुनिराज शीलगृप्त के समीप संयम धारण कर लिया । कुछ समय पश्चात् कुबेरमित्र ने समुद्रदत्त प्रादि सेठों के साथ देवगिरि पर जाकर बरधर्मगुरु के समीप तपश्चरण करना प्रारम्भ कर दिया। फलस्वरूप कुबेरमित्र पोर समुद्रदत्त ब्रह्मलोक में लोकान्तिक देव हुए।
कुबेरकान्त और प्रियदत्ता के पांच पुत्र हुए प्रोर एक पुत्री हुई। पमितमति पौर अनन्तमति इत्यादि पायिकामों के उपदेश से लाभान्वित होकर कुबेरकान्त पौर लोकपाल दानशीलता इत्यादि श्रेष्ठ गुणों से युक्त हो गये ।
एक बार कुबेरकान्त के यहां दो ऋषियों का प्रागमन हुआ। ऋषियों का दर्शन करते ही कबूतर और कबूतरी ने अपने पूर्वजन्मों को जानकर उन्हें प्रणाम किया और परस्पर के रतिभाव को त्याग दिया। यह देखकर मुनियों के मन में भी वैराग्य उत्पन्न हो गया और उन्होंने कुबेरकान्त के यहां से भोजन किए विना ही प्रस्थान कर दिया।
पक्षियों के संकेतों को जानने वाली प्रियदत्ता के पूछने पर कबूतरी ने अपने पूर्वजन्म का नाम रतिवेगा और कबूतर ने सुकान्त बताया। सुकान्त और रतिवेगा पूर्वजन्म में भी पति-पत्नी थे, प्रतः पुनः साथ रहने लगे।
मुनि के चले जाने पर राजा लोकपाल को जिज्ञासा हुई। उसकी जिज्ञासा को शान्त करने के लिए अमितमति प्रायिका ने बताया
पुष्कलावती देश में विजया पर्वत के समीपस्थ धान्यकमल नामक वन के पास शोभानगर की स्थिति है। उस नगर में प्रजापाल नाम का राजा राज्य करता था, उसकी देवश्री नाम की स्त्री थी। उस राजा के सेनापति का नाम शक्तिषण