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महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-काव्य-ग्रन्थों के स्रोत. माता-पिता हये । शक्तिषेण ने जिन दो मुनियों को माहार-दान दिया था, वे ही तेरे पिता पौर पति के गुरु हुए हैं।
एक दिन कबूतर-कबूतरी चावल चुगने के लिए दूसरे गांव गये। भवदेव के जीव बिलाव ने पूर्वजन्म के वैर के कारण उन दोनों को मार डाला। रतिवर कबूतर ही अपनी मृत्यु के बाद विजयार्द्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में स्थित गान्धार देश की उशीरवती नगरी के राजा प्रादिन्यगति और रानी शशिप्रभा का पुत्र हिरण्यवर्मा हुषा प्रौर रतिषणा कबूतरी अपनी मृत्यु के बाद विजयार्घ पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित गोरी नामक देश में विद्यमान भोगपुर में रज्य करने वाले विद्याधरों के स्वामी वायुरथ और उनकी पत्ती स्वयंप्रभा की पुत्री प्रभावती हुई।
प्रभावती के स्वयंबर में गतियुद्ध में विजय प्राप्त करके हिरण्यवर्मा ने प्रभावती को पत्नी के रूप में प्राप्त कर लिया। एक दिन दोनों को अपने पूर्वजन्म का स्मरण हो पाया। पूर्वजन्म के दाम्पत्य भाव को स्मरण करके वे दोनों परस्पर प्रत्यधिक प्रेम से रहने लगे।
एक बार हिरण्यवर्मा और प्रभावती ने सिद्धकूट के चैत्यालय में पूजा करते समय एक चारणमुनि के दर्शन किये। प्रभावती के पूछने पर मुनि ने उनके पूर्वजन्मों के विषय में बताया मोर कहा कि मैं ही भवदेव का पिता था।
___ इसी समय वायुरथ ने विरक्त होकर अपना राज्य अपने पुत्र मनोरथ को दे दिया। वायुरथ के सम्बन्धियों की इच्छा से प्रभावती की पुत्री रतिप्रभा का विवाह मनोरथ के पुत्र चित्ररथ से करके महाराज मादित्यगति ने हिरण्यवर्मा का राज्याभिषेक कर दिया, और स्वयं तपश्चरण में संलग्न हो गये।
___ एक बार हिरण्यवर्मा प्रभावती के साथ धान्यकमाल वन में सर्पसरोवर के समीप पहुंचा तो उसे अपने पूर्वजन्मों की याद मा गई। फलस्वरूप उसका मन वराग्य से भर गया। उसने अपने नगर में प्राकर अपने पुत्र सुवर्णवर्मा का राज्याभिषेक कर दिया, मोर स्वयं श्रीपुर नाम के नगर में श्रीपाल गुरु के समीप जिनदीक्षा धारण कर ली। प्रभावती ने भी शशिप्रभा के साथ गुणवती प्रायिका के समीप तपश्चरण करना प्रारम्भ कर दिया।
एक दिन मुनिगज हिरण्यवर्मा पुण्डरीकिणी नगरी पहुँचे। गुणवती प्रायिका के साथ प्रभावती पायिका भी वहां पहुंच गई। वहीं पर प्रियदत्ता को प्रभावती ने बताया कि मैं ही मापके घर की रतिषणा कबूतरी थी; मोर मुनि हिरण्यवर्मा ही रतिवर कबूतर थे। प्रियदत्ता ने मुनिराज हिरण्यवर्का की वन्दना करके अपना वृत्तान्त सुनाया। उसने बताया कि लोकपाल ने अपने पुत्र गुणपास को राज्यभार दे दिया; मोर स्वयं रतिषेण नाम के मुनि के पास संयम धारण किया। इसी समय कुबेरकान्त ने भी अपने पुत्र कुबेरप्रिय को राजसेठ का पद देकर अन्य चार पुत्रों के साथ वहीं पर दीक्षा धारण कर ली। अपने पति का वृत्तान्त