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महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-काव्य-प्रन्योक संक्षिप्त कथासार ५७ व्यवहार किया था, उनके पत्रों के सम्बद्ध अंश जो टिप्पणी में प्रस्तुत किये गये हैं,' इसकी अनुपलब्धि में प्रबल प्रमाण हैं।
२९-५-७६ मापका दि० २११५ का पत्र मिला x x x मुनिमनोरंजनशतक अब अप्राप्य है, कहीं से पाने का प्रयत्न करूंगा मोर उपलब्ध होने पर भिजवा दूंगा
प्रापका रतन लाल कटारिया मुनि श्रीज्ञानसागरजैनग्रन्थमाला
ब्यावर (राजस्थान) ऐ० पन्नालाल दि० जैन सरस्वती भवन सेठ जी की नशियां, ब्याबर (राजस्थान)
६१७७६ प्रापका पत्र देश से लौटने पर मिला। x x x यदि 'मुनिमनोरंजन' भी कहीं से उपलब्ध हो गया, तो उसे भी भिजवा दूंगा।
प्रापका
हीरालाल शास्त्री (ग) चि० कु. किरण टण्डन जी
सेठ जी० की नशियाँ शुभाशीर्वाद।
न्यावर, ता. १२-७.७६ प्रापका पत्र मिला। x x x मुनिमनोरंजनशतक अन्य मैंने तो स्वयं देखा ही नहीं। मुनिश्री का बहुत समय हिसार में बीता था, यह ग्रन्थ भी वहीं प्रकाशित हुमा था। साथ ही और भी बहुत सी पुस्तकें हिसार में ही प्रकाशित हुई थी और वे वितीर्ण भी हो चुकी हैं। अगर कोई प्रति विद्यमान हो तो वहीं से प्राप्त हो सकेगी।xxx।
• प्रापका प्रकाश चन्द्र
१३१८७६ सुभी कुमारी किरण, ऐ० पन्नालाल दि० जैन
सरस्वतीभवन सेठ जी शुभाशिषः की नशिया, ब्यावर (राजस्थान)
प्राप निम्न पते पर अपने शोधप्रबन्ध की बात लिखकर मुनिश्रीज्ञानसागर जी के जीवनचरित की विस्तृत जानकारी के लिए लिखेंमुनि श्री के पट्ट पर अवस्थित शिष्य हैं ।