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महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत काव्य-ग्रन्थों के संक्षिप्त कथासार
दे दिया; लेकिन उस निरपराध बालक को मारने की उसकी जरा भी इच्छा न हुई। उसने सोमदत्त को अंधेरा हो जाने पर, गाँव के बाहर नदी के तट पर एक वृक्ष के नीचे डाल दिया और स्वयं घर ग्रा गया ।
दूसरे दिन सूर्योदय के समय अपनी गायें चराने हेतु गोविन्द नाम का ग्वाला उसी रास्ते से निकला। प्रधानक ही वृक्ष के नीचे पड़े हुए बालक को देखकर उसे अत्यन्त हर्ष हुआ । उसने बालक को उठाया और ले जाकर अपनी पत्नी धनश्री को दे दिया । निःसन्तान दम्पती उस बालक का पालन बड़े स्नेह से करने लगे । बालक सोमदत्त भी घनश्री पोर गोविन्द को ही अपना माता-पिता समझकर तदनुकूल श्राचररण करने लगा | इस प्रकार गोविन्द धनश्री और उनके पालित पुत्र सोमदत्त का समय सुख से व्यतीत होने लगा ।
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चतुर्थ लम्ब
वाने के यहाँ पलता हुआ सोमदत्त क्रमशः युवा हो गया। एक दिन गुणपाल सेठ किसी राजकार्यवन गोविन्द की बस्ती में ग्राया । सोमदत्त को जीवित देखकर गुरपाल के प्राश्चर्य की सीमा न रही। धीरे-धीरे उसने यह जान लिया कि गोविन्द को पुत्र प्राप्ति कैसे हुई। अपना ( सोमदत्त को मारने का ) काम बनाने के लिए एक दिन गुगपाल ने गोविन्द के समक्ष सोमदत्त को प्रत्यधिक प्रशंसा कर दी । गोविन्द ने भी सोमदत्त को प्रदेश दिया कि राजसेठ का जो भी कार्य हो, उसे सोमदत्त को प्रपने वश में
चतुराई से
वह अवश्य ही पूरा करे । अब गुरपाल ने कर लिया ।
एकान्त भेजना है।
एक दिन अवसर पाकर गुरगपाल ने सोमदत्त से कहा कि आज मुझे एक आवश्यक समाचार अपने घर क्या करना चाहिए ? गुणपाल की बात सुनकर सोमदत्त ने कहा कि समाचार मुझे दीजिये; मैं आपके घर पहुंचा दूंगा । गुणपाल से समाचार के पत्र को लेकर तैयार होकर सोमदत्त शीघ्रता से चल पड़ा । थक जाने पर नगर के समीप एक उपवन के वृक्ष के नीचे पहुँच कर सो गया ।
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उसके सो जाने पर वसन्तसेना नाम की एक वेश्या वहाँ आई । सोमदत्त के सौन्दर्य से प्रभावित होकर और उसका परिचय पाने के लिए उत्सुक होकर वसन्तसेना ने उसके गले में बंधे पत्र को खोलकर पढ़ा । पत्र में सेठ गुणपाल की ओर से अपनी पत्नी और पुत्र के लिए प्रदेश था कि सोमदत्त को विष दे दिया जाय (अर्थात् जहर खिलाकर मार डाला जाय । )
वसन्तसेना ने विचार किया कि सेठ गुरणपाल जैसा सज्जन ऐसा प्रकार्य कार्य नहीं कर सकता । अवश्य ही पत्र लिखने में भूल हुई है। उसने निश्चय ही इस सुन्दर युवक से अपनी कन्या विषा के विवाह का ही प्रादेश दिया होगा प्रतएव उसने 'विषं सन्दातव्यम्' के स्थान पर 'विषा सन्दातव्या' रखकर अपने गन्तब्य को प्रस्थान किया ।
लिखकर पत्र को पूर्ववत्