________________
के सम्पूर्ण ज्ञाता होते हैं वे श्रतकेवली' कहलाते हैं। श्रतकेवली का ज्ञान, परोक्ष ज्ञान होता है और इसी भव से मोक्ष जाने की उनकी पात्रता निश्चित नहीं होती।
महावीर के उपरान्त अविच्छिन्न परम्परा में गौतम स्वामी, सुधर्मा और जम्बूस्वामी ये तीन ही केवलज्ञानी हुए हैं। इनके उपरान्त, विष्णु नन्दि, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्द्धन और भद्रबाहु ये पाँच श्रुतकेवली थोड़े-थोड़े अन्तराल से इस भारत भूमि पर हुए। भद्रबाहु के उपरान्त सम्पूर्ण श्रुत के ज्ञाताओं की यह परम्परा समाप्त हो गयी।
भद्रबाहु गोवर्द्धन आचार्य के शिष्य थे। भविष्यज्ञानी गुरु ने, उनके शुभ लक्षणों से प्रभावित होकर किशोरावस्था में ही उन्हें अपनी शरण में ले लिया था। प्रारम्भ में गुरु के साथ, और आचार्यपद ग्रहण करने पर अपने संघ के साथ, उन्होंने अनेक बार देशाटन किया था। वे अत्यन्त क्षमतावान् और प्रतिभाशाली आचार्य थे। उन दिनों देश में सर्वत्र भगवान् महावीर के 'अचेलक धर्म' को धारण करनेवाले साधु-संघों का विहार होता था। जैनों में दिगम्बर-श्वेताम्बर भेद तब तक प्रारम्भ नहीं हआ था। उस समय तुम्हारा देश, मौर्य साम्राज्य के संस्थापक सम्राट चन्द्रगुप्त के अधीन था। तुम्हारे इतिहासकाल में इतने विशाल एकक्षत्र साम्राज्य का स्वामी, इतना शक्तिशाली सम्राट, चन्द्रगुप्त मौर्य के पश्चात् फिर दूसरा नहीं हुआ। ___मौर्य साम्राज्य की स्थापना के समय से ही चन्द्रगुप्त और चाणक्य दोनों पर आचार्य भद्रबाहु का प्रभाव था। इसी का फल था कि उन दोनों ही महापुरुषों ने दिगम्बरी दीक्षा धारण करके, अपने जीवन का परिष्कार किया। चाणक्य ने मुनिपद की साधना वहीं उत्तरापथ में सम्पन्न को। आचार्य के सम्पर्क के कारण चन्द्रगुप्त के विचारों में भी धीरे-धीरे उदासीनता आती गयी। मगध का शासन अपने पुत्र बिन्दुसार को सौंपकर, शान्त जीवन व्यतीत करने के लिए, उन्होंने साम्राज्य की उप-राजधानी उज्जयिनी को अपना निवास बना लिया था। तुम्हारा आज का उज्जैन ही यह उज्जयिनी है।
एक दिन उज्जयिनी नगर में आहार के लिए जाते समय आचार्य भद्रबाहु को कुछ अपशकुन हुआ। उन अष्टांग निमित्तानी महामुनि ने उसका यह अर्थ फलित किया
समस्त उत्तरापथ में बारह वर्ष के लिए भयंकर दुष्काल होगा। क्षुधा-पीड़ित मनुष्य, उदरपोषण के प्रयत्न में, बड़ी से बड़ी अनीति ग्रहण करने के लिए बाध्य होंगे। साधुओं के लिए संयम का निर्वाह १४ / गोमटेश-गाथा