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प्रतिवर्ष उत्तर के विभिन्न जनपदों से भी शततः मुनि, त्यागी और गृहस्थ दक्षिणावर्त की ओर आते रहते थे । इसी कारण पूरे भारत वर्ष के जैन स्थापत्य और मूर्तिकाल के प्राचीन वैभव से वे आचार्य पूर्णतः परिचित थे । उसकी अधुनातन उपलब्धियों का लेखा-जोखा भी उनके पास था ।
चामुण्डराय और रूपकार के समक्ष, एक दिन आचार्यश्री ने, अब तक ज्ञात उन सभी बाहुबली - प्रतिमाओं का सूक्ष्म विश्लेषण किया ।
यहीं कर्नाटक में ही, बदामी पर्वत के शैलगृह में और ऐहोल के गुहा मन्दिरों में, पुरुषाकार से भी अधिक ऊँची बाहुबली मूर्तियाँ उन्होंने स्वयं पाषाण में उत्कीर्ण देखी थीं । ऐहोल के भित्ति चित्रों में भी बाहुबली का एक चित्रण उनकी दृष्टि में आया था । राष्ट्रकूट कलाकारों ने अभी थोड़े ही समय पूर्व अपनी छेनी और तूलिका से इनका अंकन किया था । ऐलोरा की गुफाओं में भी बाहुबली की ऐसी ही लतावेष्टित मूर्तियाँ उत्कीर्ण हो चुकी थीं।
बाहुबली की एक सप्तधातु की प्रतिमा भी इस बीच निर्मित हो चुकी थी । उस समय यहीं, मेरे ही मस्तक पर, चन्द्रप्रभु बसदि में एक हाथ से अधिक अवगाहन वाली वह मूर्ति विराजमान थी । उस समय उसका निर्माण हुए भी लगभग एक शताब्दी का समय व्यतीत हो चुका था । अनेक शताब्दियों तक इस ग्राम में लोगों को उस कलाकृति का दर्शन होता रहा, परन्तु कालान्तर में तुम्हारे किसी साधर्मी (?) ने उसे एक प्राचीन कला संग्रहालय में पहुँचा दिया । वह प्रतिमा, तुम्हारे देश में बाहुबली की, धातुनिर्मित प्राचीनतम कलाकृति है ।
उत्तर भारत में उपलब्ध बाहुबली प्रतिमाओं के संदर्भ में भी, उस दिन वहाँ विचार किया गया । मथुरा नगर जैन स्थापत्य का प्राचीनतम केन्द्र था । कुषाण काल से अब तक वहाँ निरन्तर जैन मूर्तियों का निर्माण हुआ, परन्तु एक भी बाहुबली - बिम्ब तब तक वहाँ बना नहीं था ।
महावीर के निर्वाण के तीन चार शताब्दी उपरान्त, ऐल सम्राट् खारवेल द्वारा ओडिसा के खण्ड गिरि उदयगिरि गुहा - मन्दिरों का निर्माण हुआ । यहाँ भी उस समय बाहुबली की प्रतिमाएँ नहीं बनायी गयीं । दशार्ण देश में विदिशा के समीप, गुप्तकालीन जैन गुहाओं में भी बाहुबली अनुपस्थित थे ।
आचार्यश्री के इस विश्लेषण से यह वास्तविकता प्रकट थी कि भगवान् महावीर के निर्वाण के उपरान्त, लगभग बारह सौ वर्ष तक बाहुबली प्रतिमा के निर्माण की ओर तुम्हारे पूर्वजों का ध्यान नहीं गया । अतीत में भरतराज द्वारा स्थापित वह सवा पाँच - सौ धनुष ऊँची प्रतिमा,
११४ / गोमटेश - गाथा