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श्रद्धा और सम्मान
अनेक उपस्थित जनों ने, इस अवसर पर अनेक प्रकार के दान वहाँ घोषित किये। अभिषेक और पूजन के लिए पुष्कल मात्रा में, भाँतिभाँति का द्रव्य लोग अपने घरों से लाये थे। भविष्य में भगवान् के अभिषेक के लिए सदा दूग्ध की व्यवस्था होती रहे, इस विचार से शतशः ग्रहस्थों ने भूमि क्षेत्र और ग्राम तथा स्वर्ण आदिक का दान भण्डार को दिया। महामात्य ने स्वतः छियानबे हजार मुद्राओं की वार्षिक आय वाले ग्रामों का समूह, भण्डार को प्रदान किया। अनेक जनों ने स्वर्ण और रत्नों की अनेक प्रतिमाएँ श्रद्धापूर्वक भेंट की। अत्तिमब्बे ने षट्खण्डागम सहित एक-सौ एक ग्रन्थों की प्रतियाँ श्रवणबेलगोल के जिनालय में विराजमान करायीं। __शततः जनों ने कार्य की सम्पन्नता पर महामात्य को बधाइयाँ दीं। हर्षपूर्वक लोग उनके गले मिलकर अपना आनन्द प्रदर्शित करते रहे। सामान्य जनों ने करबद्ध अभिवादन करके उनका सम्मान किया। अनेक जनों ने पदानुसार वस्त्रालंकरण भेंट करके भी उनका अभिनन्दन किया।
गंगनरेश की ओर से रूपकार को स्वर्णदण्ड, छत्र और चमर का सम्मान प्रदान किया गया। महामात्य को उन्होंने बहुमूल्य सामग्री के साथ सम्मानपूर्वक 'राय' की उपाधि से अलंकृत किया। लालमणि से निर्मित चन्द्रनाथ स्वामी की सुन्दर प्रतिमा उन उपहारों की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भेंट थी। मूडबिद्री की गुरुबसदि में सिद्धान्त-दर्शन के समय, अनेक रत्न प्रतिमाओं के मध्य, आज भी तुम्हें उस मणि-बिम्ब का दर्शन प्राप्त होता है।
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१६८ / गोमटेश-गाथा