Book Title: Gomtesh Gatha
Author(s): Niraj Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 237
________________ इसका निर्माण किसी एक व्यक्ति से कभी सम्भव ही नहीं था । मातेश्वरी की इच्छा पूरी करने का हमने संकल्प किया। संयोग से शिल्पी के रूप में यह योग्यतम व्यक्ति उपलब्ध हो गया । आचार्यश्री की कल्पना, शिल्पी के कौशल और आप जैसे भक्तों के भाग्य से यह छवि यहाँ प्रकट हो गयी। इसमें हमारा कुछ नहीं है । हमने और आपने मिलकर जैसे आज यह महोत्सव यहाँ देखा है, उसी प्रकार हमारे और आपके वराज ऐसे अनेक महोत्सव यहाँ देखें । दीर्घकाल तक इन भगवान् की पूँजा, आरती और अभिषेक वे करते रहें ।' 'शिल्पी के प्रति अपने मन की भावनाएँ व्यक्त कर सकें, ऐसे शब्द हमारे पास नहीं हैं। जैसी लगन, जैसी निष्ठा और जैसी निस्पृहता, इस प्रतिमा को गढ़ते समय शिल्पी के आचरण में समाहित रही है, वैसी महानता के बिना इतना महान् निर्माण सम्भव भी कहाँ था । इस उत्तुंग जिनबिम्ब का तक्षण करते हुए, शिल्पी ने अपने जीवन को भी पर्याप्त उत्कर्ष दिया है । यह भगवान बाहुबली के चरणों का ही प्रभाव है । हमें तो कभी-कभी लगता है कि शिल्पी अपने उपकरण लेकर जिन्हें गढ़ने चला था, उन्होंने स्वयं शिल्पी को गढ़कर धर दिया है । उसके जीवन की दिशा ही बदल दी है ।' 'पारिश्रमिक की पुष्कल स्वर्णराशि का त्याग करके एक दिन इस रूपकार ने, अपनी निर्लोभ वृत्ति का परिचय दिया था । आज उसने इन्हीं बाहुबली भगवान् की सेवा में शेष जीवन व्यतीत करने का संकल्प प्रकट किया है। इस प्रतिमा से अधिक भव्य कलाकृति का निर्माण अब सम्भव होगा नहीं, इसलिए तक्षण से आज उसने सदा के लिए विराम ले लिया है । आजीवन उसकी धर्माराधना में सहायक होना हमारे वंशजों का दायित्व होगा ।' 'यह श्रवणबेलगोल पुरातन तीर्थ है । दूर-दूर तक इसकी महिमा विख्यात है । बाहुबली भगवान् की स्थापना से अब यह और प्रसिद्ध होगा । यहाँ, इसी चन्द्रगिरि पर, एक जिनालय स्थापित करने का हमारे मन में अनेक बार विचार आया। आज आचार्यश्री की आज्ञा के निमित्त से वह साकार हो रहा है । यह हमारा परम सौभाग्य है ।' 'गंगनरेश धर्मावतार स्वामी आज स्वयं यहाँ विराजते हैं । इस तीर्थ की सुरक्षा दीर्घकाल तक होती रहे ऐसी उनकी भी भावना है। नगर में जो दानशाला संचालित है उसे दिगम्बर जैन मठ के साथ जोड़ा जाय । स्थायी आय के साधन प्रदान करके उस मठ की व्यवस्था को स्थायी किया जाय, ऐसी हमारी कामना है । हम धर्मावतार श्रीमान् से विनय गोमटेश - गाथा / २०६

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