Book Title: Gomtesh Gatha
Author(s): Niraj Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 228
________________ भावुकता ने आज उनका बिहार भी करा दिया है। चित्र-वाहिनी शकट का अनुगमन तीन गज कर रहे थे। एक गज पीठ पर षट्खण्डागम, धवल-जयधवल, दूसरे पर गोम्मटसार और तीसरे पर 'चामुण्डराय पुराण' की प्रतियाँ सम्मानपूर्वक सजाकर रखी गयी थीं। गंग नरेश, महामात्य, जिनदेवन और रूपकार आगे पीछे अलगअलग गजों पर आरूढ़ थे। इन गजों के आगे-पीछे भी भाँति-भाँति के वादित्र, शोभा-प्रतीक और मंगल कलश चल रहे थे। पीछे-पीछे हर्षमग्न नर-नारियों का भारी समूह था। स्वागत द्वार के पास, तुम्हारे इस चिक्कबेट्ट की तलहटी में दानशाला के सजे-धजे हाथियों ने, शुण्ड में पुष्पमालाएँ लेकर गंगनरेश और महामात्य का स्वागत किया । एक चपल हथिनी ने अपने महावत के इंगित पर रूपकार को शुण्ड में उठाकर अपनी पीठ पर बैठा लिया। उसके साथ के छोटे से गज-शावक पर सौरभ को बिठाया गया और तब हथिनी और उस गज-शिशु ने, मृदंगम की थाप पर आधी घड़ी तक सुन्दर नृत्य किया। गजराजों के द्वारा इस स्वागत के उपरान्त जिनबिम्ब और जिनवाणी को पालकी में रखकर ऊपर लाया गया। ऋषिगिरि मेरा नाम उस दिन एक बार फिर सार्थक हो उठा। बड़ी संख्या में दिगम्बर ऋषि उस दिन मुझे पावनता प्रदान कर रहे थे। समारोह में समागत सभी आचार्य और मुनि एकसाथ इस प्रांगण में विराजमान थे। सद्य-मुण्डित नवदीक्षित मुनियों की पंक्ति एक ओर अलग ही दिखाई दे रही थी। साधु समुदाय ने उठकर भगवान् नेमिनाथ की वन्दना की, फिर जिनवाणी को नमस्कार करके वे सब अपने अपने आसन पर आसीन हुए। मातेश्वरी और महिलामणि अत्तिमब्बे, पहले से ही आर्यिका माताओं की सेवा-सुश्रूषा में यहाँ संलग्न थीं। सभी समागतों ने उस दिन यहाँ देव, शास्त्र और गुरु की एकसाथ वन्दना करने का सौभाग्य प्राप्त किया। मुनिराजों ने सबको धर्मवृद्धि का आशीष प्रदान किया। थोड़ी ही देर में यहाँ उन सबके यथास्थान बैठ जाने पर समुदाय ने एक व्यवस्थित सभा का रूप ग्रहण कर लिया। अजितसेन आचार्य का आशीर्वचन __सभा वहाँ जुड़ तो गयी, परन्तु उसका संचालन करने के लिए सभा के चतुर वक्ता पण्डिताचार्य अब उपलब्ध नहीं थे। दिगम्बर मुनिराज के रूप में आज वे मुनि-मण्डली में विराज रहे थे। आज महाकवि रन्न ने २०० / गोमटेश-गाथा

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