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- 'आपने अनेक विस्मय यहाँ आकर देखे । शिल्पी के उपकरणों ने अनगढ़ शिला को देव प्रतिमा की भव्यता प्रदान कर दी । पण्डिताचार्य विधि-विधान प्रतिष्ठा के साथ पाषाण को 'भगवान्' बना दिया । महामात्य के सहस्र कलशों से जो अभिषेक सम्पन्न नहीं हो पाया, एक साधनहीन पुजारिन की भक्ति भरी गुल्लिका ने, क्षण-भर में वह सम्पन्न कर दिया। ऐसे ही कुतूहलों के समूह का नाम संसार है । इन समस्त घटनाओं से संसार की यथार्थता का ज्ञान करना, उनमें अपने उत्कर्ष के सन्दर्भों की शोध करना ही जीव का सम्यक् पुरुषार्थ है ।'
'शिल्पी के उपकरणों का चमत्कार आप सबने देख लिया । अब विचारना चाहिए कि वे कौन-से उपकरण हैं, जिनके प्रयोग से आप अपने अनगढ़ व्यक्तित्व को गढ़कर, उसे उसका सम्यक् स्वरूप प्रदान कर सकते हैं । अनुष्ठान के मन्त्रों ने जड़ पाषाण को भगवान् बना दिया, फिर आप तो चेतन आत्मा हैं । आपको उन मन्त्रों की शोध करना चाहिए जिनमें आत्मा को परमात्मा बनाने की सहज सामर्थ्य है ।'
'अनादि से इन्हीं जिज्ञासाओं ने जीव का कल्याण किया है । भगवान् महावीर ने इन प्रश्नों के अनुभूत समाधान हमें प्रदान किये हैं । उनका उपदेश आगम शास्त्रों में संकलित हैं । भगवान् कहते हैं कि स्वपर विवेक की पैनी - छैनी के प्रयोग से विकारी आत्मा को निर्विकार किया जा सकता है । उसके साथ अनादि से लगी हुई कषायों की कुरूपता हटायी जा सकती है। वीतराग चिन्तन ही एकमात्र ऐसा मन्त्र है जिसके प्रयोग से आप अपनी आत्मा में भी ईश्वरत्व की प्रतिष्ठा कर सकते हैं । इतना आत्मविश्लेषण यदि कर सकें तो आपका इस महोत्सव में आना, सफल है | बाहुबली के दर्शन की यही सार्थकता है ।'
'पण्डिताचार्य ने इन गोमटेश के आवाहन में जैसी लगन दिखाई थी, वैसी ही निष्ठा के साथ उन्होंने भगवान् के बतलाये पथ पर चलने का पुरुषार्थ भी कर दिखाया है । 'अरिष्टनेमि' महाराज का यह उत्साह आप लोगों के लिए भी अनुकरणीय है । मोही जीवों को संसार में कहीं शान्ति प्राप्त नहीं होती । परिग्रह सदा आकुलता ही उत्पन्न करता है । उससे ममत्व छोड़ने पर शान्ति और आनन्द का अनुभव आपको भी हो सकता है ।'
'गंगनरेश महाराज राचमल्ल को इस महोत्सव का बड़ा श्रेय है । यह राजवंश जैनधर्म का श्रेष्ठ भक्त रहा है । उनके राज्य में ऐसी अनुपम प्रतिमा की स्थापना हुई, यह उनके लिए गौरव की बात है । हमें विश्वास है कि वे तथा उनके उत्तराधिकारी सदैव जैन संस्कृति की रक्षा
२०४ / गोमटेश - गाथा