Book Title: Gomtesh Gatha
Author(s): Niraj Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 220
________________ और चाँदनी की श्वेत पुष्प-मालाओं से उनका अभिनन्दन किया गया हो । गो-घृत के अभिषेक ने क्षणेक के लिए प्रतिमा को स्वर्णिम -सी पीत आभा से आलोकित किया । पुष्पों, फलों और स्वर्ण - मुद्राओं से जिनबिम्ब का अभिषेक, उस दिन पहली बार ही मैंने देखा । यहाँ उपस्थित अनेक लोगों के लिए वह दृश्य सर्वथा नवीन और दुर्लभ था । अनेक प्रकार के रंग-विरंगे पुष्पों के साथ केसर-चन्दन से रंगे हुए तन्दुल तथा स्वर्ण और रजत के कृत्रिम पुष्पों का वहाँ बाहुल्य था । बाहुबली पर बरसते हुए इन रंग-विरंगे पुष्पों का समूह उस विग्रह पर सतरंगे इन्द्र-धनुष का संभ्रम उत्पन्न करता था । पुष्पाभिषेक के उन बिखरे हुए पुष्पों को लौटती समय लोग, चुन-चुनकर, बड़ी श्रद्धा भक्ति के साथ, गोमटेश के मंगल आशीष के रूप में अपने साथ ले गये । सुपारी, बादाम, छुहारा, द्राक्षा और नारिकेलि की गरी आदि एकत्र करके, फलों से उन्हें अभिषिक्त करने के पश्चात्, भारी मात्रा में एकत्र की गयी स्वर्ण-मुद्राओं द्वारा गोमटेश भगवान् का अभिषेक किया गया । पुष्कल स्वर्ण-मुद्राओं का वह अक्षय-सा कोष, प्रभु से मस्तक और विशाल स्कन्ध भाग को छूता हुआ, नीचे पर्वत के धरातल पर झनकार के साथ गिरता ऐसा लगता था, मानो कुबेर ने अपना दिव्य कोष ही इन परम दिगम्बर वीतराग प्रभु के चरणों पर निछावर कर दिया हो । धरती पर उछलती-ढरकती वे स्वर्ण मुद्राएँ देखकर लगता था जैसे निर्वाण लक्ष्मी के स्वागत में हर्षित होकर, लोक-लक्ष्मी स्वयं वहाँ नृत्य कर रही हो। मुझे तीन दिन से अभी तक वहाँ भक्तों के तन और मन ही नाचते अनुभव हुए थे। आज पुष्पों, फलों और स्वर्ण - मुद्राओं को भगवान् के चरणों में फुदकता कूदता - सा देखकर, लगा जैसे अब चेतन के साथ जड़ भी, उन बाहुबली की पावन देह का स्पर्श पाकर, आनन्दातिरेक से नाच उठा है। पूर्ण - कलश अष्ट द्रव्यों द्वारा महामस्तकाभिषेक सम्पन्न होने पर अन्त में पुनः स्वच्छ प्रासुक जल से पूर्णाभिषेक किया गया । सर्वप्रथम काललदेवी ने पूर्ण - कलश की धारा भगवान् के मस्तक पर प्रवाहित की, फिर चामुण्डराय दम्पती और उनके कुटुम्ब ने कलश चढ़ाये । इसके पश्चात् वहाँ उपस्थित जन समुदाय में से सहस्रों नर-नारियों ने मंच पर जाकर भगवान् का अभिषेक किया। चार घड़ी तक अभिषेक का यह क्रम चलता रहा । १९२ / गोमटेश - गाथा

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