Book Title: Gomtesh Gatha
Author(s): Niraj Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 222
________________ जनेश्वरी दोक्षा 1 महोत्सव के प्रथम दिन ही अनेक साधकों ने आचार्यश्री से मुनि दीक्षा की याचना की थी। उनके चरणों में संकल्प के श्रीफल चढ़ाये थे । आचार्य महाराज ने उन सबकी प्रार्थना पर विचार करने के लिए आज का समय निश्चित किया था । इस बीच अपने योग्य शिष्यों द्वारा उन्होंने सभी दीक्षार्थी मुमुक्षुजनों की योग्यता, दृढ़ता, साधना, गोत्र, कुल, शील आदि का परिचय और परीक्षण करा लिया था। उनमें से जिन्हें पिच्छी - कमण्डलु धारण करने की गरिमा का पात्र पाया गया उन्हें आज दीक्षा दी जानी थी। जिनमें कोई अनर्हता पायी गयी, उन्हें अन्य व्रत ग्रहण करने का परामर्श दिया गया था । एक-एक कर दीक्षार्थी मंच के समक्ष आते थे । गोमटेश की वन्दना करके विराजमान साधुओं को नमोस्तु करते थे और सबके समक्ष अपना पवित्र अभिप्राय व्यक्त करके आचार्यश्री से दीक्षा की प्रार्थना करते थे । विराग का उमड़ता पारावार पण्डिताचार्य कल से ही बहुत गम्भीर और अन्तर्मुखी दिखाई दे रहे थे । लगता था कि कल दुग्धाभिषेक के बीच में व्यवधान की प्रतीक घटना, उन्हें बहुत गहरे तक झकझोर गयी थी । प्रातः काल से यद्यपि पूर्णाभिषेक के अनुष्ठान का पूरा विधि-विधान उनके ही द्वारा सम्पन्न हो रहा था, पर आज उनकी सहज विनोद वृत्ति, उनके व्यवहार की प्रगल्भता और वाचालता, जैसे कहीं खो गयी थी । गोमटेश्वर भगवान् की दृष्टि से दृष्टि मिलाकर देर तक वे उन्हें निहारते रहे थे । अनेक बार किसी न किसी के टोकने पर ही उनकी वह एकाग्रता खण्डित हुई थी। उनके मन में हो रहा द्वन्द्व, आज पण्डिताचार्य के क्रिया-कलापों में स्पष्ट दिखाई दे रहा था। एक दो बार उनके नेत्रों से होता हुआ अश्रुपात भी लोगों की दृष्टि में आ गया । पूर्णाभिषेक का अंतिम कलश अपने हाथों से ढार कर उन्होंने शांतिपाठ किया और गोमटेश्वर के चरणों में साष्टांग लोट गये। आधी घड़ी तक उन चरणों को अपनी भुजाओं में आवेष्टित किये हुए पण्डिताचार्य, ध्यान-मग्न थे, या बेसुध हो गये थे, सो कोई जान नहीं पाया । फिर अत्यन्त शान्त भाव से वे उठे। सभी आचार्यों-मुनियों की वन्दना की और आचार्यश्री के समक्ष करबद्ध खड़े होकर उन्होंने निवेदन किया ‘यह संसार आकुलताओं का पारावार ही दिखा, स्वामी ! निरा१६४ / गोमटेश - गाथा

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