________________
३४. गोमटेश का उद्भव
कितने दिनों तक यह निर्माण कार्य चलता रहा है मैं कह नहीं सकता। कितनी बार ग्रीष्म की भारी तपन में श्रमिकों को वहाँ स्वेदसिक्त देखा, कितनी बार मेघों ने उस अर्द्धनिर्मित प्रतिमा का जलाभिषेक किया, कितनी बार शीत की सुखद धूप का आनन्द लेते जनसमूह को दोइवेट पर विचरते देखा, इस सबका लेखा मेरे पास नहीं है। इस बीच अनेक बार थोड़े-थोड़े दिनों के लिए आचार्यश्री का अन्यत्र भी विहार होता रहा । अनेक बार राजकाज के लिए महामात्य तलकाडु आते जाते रहे । अजितसेन महाराज के दर्शन के लिए एक बार सभी लोगों ने बंकापुर की यात्रा भी की, परन्तु पण्डिताचार्य और जिनदेवन एक दिन के लिए भी यहाँ से अनुपस्थित नहीं रहे । रूपकार के स्रजनशील उपकरणों की मीठी झनकार इस वातावरण में अनवरत गूंजती ही रही। लोगों को चर्चा करते सुना करता था कि अर्द्ध युग तक, लगभग छह वर्षों तक, तक्षण का कार्य चलता रहा।
प्रतिमा-निर्माण के कार्य की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई थी। आकार ग्रहण करता हुआ यह पर्वतखण्ड दस-पाँच कोष से दिखाई भी देता था। देश-देशान्तर के लोग इस निर्माणाधीन कृति को देखने नित प्रति आते थे। विन्ध्यगिरि पर उनका मेला-सा लगा रहता था। सभी आगंतुकों के भोजन विश्राम की व्यवस्था चामुण्डराय की ओर से, सरस्वती के निर्देशन में होती थी।
जैसे जैसे प्रतिमा पूर्णता के निकट आती जा रही थी, वैसे ही वैसे रूपकार का उत्साह बढ़ता जा रहा था। उसका आत्मविश्वास अब साकार हो रहा था। उसका श्रम सार्थक हो उठा था। प्रतिमा के कण्ठ भाग तक स्थूल तक्षण में रूपकार ने कुछ शिल्पियों का सहयोग लिया