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३८. दुग्ध रवीर
अजितादेवी ने आज गोदुग्ध की खीर बनवायी थी। भोजन में उन्होंने बड़े उत्साहपूर्वक मातेश्वरी के थाल में एक पात्र भरकर रख दी। बहुत दिन के बाद वे मातेश्वरी को दुग्ध का भोजन परोस पा रही थीं। आज बाहुबली का दर्शन प्राप्त हो गया, उनकी प्रतिज्ञा पूर्ण हुई, अब तो उन्हें सदा की तरह दुग्धाहार ग्रहण करना ही होगा। ___'आज नहीं बेटी, कुछ दिन वाद दुग्ध पाक का भोजन करूंगी।' धीरे से नकारते हए काललदेवी ने खीरपात्र पृथक् कर दिया। ___मातेश्वरी के उत्तर ने चामुण्डराय का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने भोजन प्रारम्भ नहीं किया था। अपनी पीठिका छोड़कर जननी के समक्ष वहीं भूमि पर बैठ गये
'आज तो तुम्हारा प्रण पूर्ण हुआ अम्मा ! इस वृद्ध शरीर को हितकर भोजन से वंचित करने का अब कौन-सा प्रयोजन शेष रहा है ? आज तो दुग्ध ग्रहण करना ही पड़ेगा।'
उनके अनुरोध में आग्रह और हठ का समन्वय था।
'नहीं रे गोमट ! मेरा प्रण अभी पूर्ण कहाँ हुआ ? अभी तो मेरे गोमटेश का मात्र दर्शन ही मैंने पाया है। अपनी आँखों से उनका दुग्ध अभिषेक जिस दिन देखेंगी उसी दिन पूर्ण होगा मेरा प्रण । मेरे बाहुबली के अभिषेक का दुग्ध जिस दिन इस विन्ध्यगिरि पर बहेगा, उस दिन मैं अजिता से स्वतः माँगकर दुग्ध ग्रहण करूँगी।'
उत्तर का स्वर धीमा था, पर उसमें दृढ़ता थी। फिर भी चामुण्डराय ने एक बार और आग्रह किया___'महाभिषेक तो अगले मास ही हो सकेगा अम्मा ! महाराज ने यही मुहूर्त बताया है। रूपकार ने भी प्रतिमा में स्निग्धता लाने के लिए