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के पूरे संघ के साथ तीन दिवस पूर्व ही यहाँ पधारे थे। उस दिन दो कोस आगे जाकर आचार्यश्री ने और महामात्य ने अपने गुरुदेव की अगवानी की थी। विद्यापीठ के प्रायः सभी विद्वान् और शिक्षार्थी ब्रह्मचारी, उनके अनुगामी होकर आये थे। उस दिन लगता था कि समूचा बंकापुर स्थानान्तरित होकर श्रवणबेलगोल में आ बसा है। यहीं पर्वत पर प्रतिदिन प्रातःकाल आचार्यश्री का प्रवचन होता था। ___ अत्यन्त वृद्ध तथा असक्त हो जाने के कारण, नेमिचन्द्राचार्य के दीक्षागुरु अभयनन्दी आचार्य का आगमन नहीं हो सका था। उन्होंने कुछ शिष्यों के साथ महामात्य के लिए एक शास्त्र और अपना मंगल आशीर्वाद प्रदान किया था। यह समाचार भी उन शिष्यों से मुझे सुनने को मिला कि अभयनन्दि महाराज ने समाधि-साधना के लिए क्षेत्र-संन्यास ग्रहण कर लिया है । आचार्यश्री के दोनों विद्यागुरु मुनि वीरनन्दी और मुनि इन्द्रनन्दी, दस दिवस पूर्व से ही यहाँ विराज रहे थे। आचार्यश्री के शिष्यों का तो उन दिनों यहाँ सम्मेलन ही हो गया था। सहस्राधिक दिगम्बर संत महाभिषेक के उस मेले में सहज ही यहाँ एकत्र हो गये थे। लोग चर्चा करते थे कि उनकी संख्या में यहाँ और भी वृद्धि होनेवाली है। कुछ विरागी साधक इस महोत्सव में ही दीक्षा लेने की भावना कर रहे थे। महासती अत्तिमब्बे ___ अतिथि तो उस मेले में अपार आये थे पथिक ! एक से एक महिमामण्डित नररत्न यहाँ बिखरे थे। उनमें एक थी कनार्टक की देवी अत्तिमब्बे, जिसे आज भी सबसे अधिक, सबसे पृथक् मैं स्मरण करता हूँ। तैलप सम्राट आहवमल्ल के प्रधानसेनापति सुभट मल्लप के साथ चामुण्डराय की प्रगाढ़ मित्रता और स्नेहपूर्ण सम्बन्ध थे। अत्तिमब्बे इन्हीं मल्लप की लाड़ली बेटी थी। प्रारम्भ से ही उस पर मातेश्वरी का भी अपूर्व स्नेह था । उन्होंने बड़े आग्रह से उसे आमन्त्रण भेजा था। ____ असमय वृद्ध और श्रम जर्जरित अत्तिमब्बे, न मातेश्वरी का आदेश टाल सकी, न गोमटेश के दर्शन का प्रलोभन जीत सकी। गाँव-गाँव में दीन-दुखियों का दुःख निवारण करती, अपनी प्रवृत्ति के अनुसार जनसेवा का व्रत निर्वाह करती हुई वह बाहुबली के दर्शनार्थी भक्तों का बड़ा भारी समूदाय, अपने ही व्यय पर साथ लेकर, पद-यात्रा करती इस ओर आयी थी। चन्नराय पट्टन तक उसका आगमन सुनते ही मातेश्वरी ने जिनदेवन और सरस्वती को उसकी अगवानी के लिए भेज दिया था।
गोमटेश-गाथा | १७३