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बाद कभी नहीं हुआ। ____ इधर कुछ समय से प्रति बारहवें वर्ष बाहुबली के 'युग महाभिषेक' की जो परम्परा तुम लोगों ने प्रारम्भ की है, देखता हूँ उसमें नित प्रति नवीनता और विराटता का समावेश हो रहा है । यदि इसी प्रकार उत्कर्ष होता रहा, तो किसी दिन यह महामस्तकाभिषेक तुम्हारे देश का विशालतम महोत्सव हो सकता है। यह सहज सम्भव है क्योंकि सहस्र वर्ष पूर्व की और आज की स्थितियों में बड़ा अन्तर है। मुझे स्मरण है, तब मनुष्यों की संख्या इतनी अधिक नहीं थी। ग्राम, जनपद और निवास बहुत विरल थे। आवागमन के साधन भी इतने शीघ्रगामी ओर सुविधापूर्ण नहीं थे। दूरगामी साधनों का तो अभाव ही था। निर्माण के साधनों का यन्त्रीकरण भी तब नहीं हआ था। मनुष्य की देह-शक्ति के द्वारा ही सारे कार्य सम्पन्न होते थे। कहीं-कहीं उनमें वृषभ, अश्व और गज आदि पशुओं का योगदान अवश्य मिल जाता था। उस सबकी तुलना में आज तुम्हारे पास अधिक साधन हैं, अधिक सुविधाएँ हैं।
तुम्हारी यह पीढ़ी भाग्यवान है पथिक, कि सहस्राब्दि प्रतिष्ठापना महामस्तकाभिषेक महोत्सव मनाने का सुअवसर तुम्हें मिला है। चामुण्डराय की पचासवीं पीढ़ी के द्वारा आयोजित यह उत्सव, जनसंख्या और साधनों की वृद्धि के अनुपात से, उस प्रथम प्रतिष्ठापना महोत्सव से पचास गुना विशाल होना चाहिए। अब देखकर ही अनुमान कर पाऊँगा कि तुम लोग कहाँ तक इस अनुपात की रक्षा कर पाते हो। तुम्हारे प्रयत्न और तुम्हारा उत्साह तो आशाजनक लगते हैं।
एक मास की वह समयावधि देखते ही देखते व्यतीत हो गयी। उत्सव की रूपरेखा में दिन प्रति-दिन निखार आने लगा। नेमिचन्द्राचार्य और चामुण्डराय के श्रद्धास्पद गुरु, मुनिनाथ आचार्य अजितसेन महाराज बंकापुर से गोमटपुर के लिए विहार कर चुके थे। शीघ्र उनके यहाँ पधारने की सम्भावना थी। गंगराज भी उस अवसर पर यहाँ पधार कर बाहबली का अभिषेक करेंगे, ऐसी चर्चा सुनाई देती थी। अनेक साधुओं और त्यागीजनों का आना प्रारम्भ हो गया था।
शीघ्र ही मेरे सहोदर को, इस विन्ध्यगिरि को, जो गरिमा, जो प्रतिष्ठा और जो प्रसिद्धि मिलनेवाली थी, उसकी कल्पना मुझे पुलकित कर रही थी।
गोमटेश-गाथा | १७१