Book Title: Gomtesh Gatha
Author(s): Niraj Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 200
________________ ४१. महोत्सव के मान्य अतिथि आचार्य अजितसेन महोत्सव के इस अवसर पर अनेक दिगम्बर आचार्यों-मुनियों के संघ, दूर-दूर से विहार करके यहाँ पधारे थे। उन दिनों बंकापुर श्रमण संस्कृति और जैन विद्या का प्रमुख केन्द्र था। वहाँ का ऋषि-आश्रम कर्नाटक का तिलक कहलाता था। शतशः मुनि, आर्यिकाएँ, क्षल्लक और त्यागी प्रायः वहाँ बने रहते थे। विद्यापीठ के सहस्रों विद्यार्थी सरस्वती की उपासना करते थे। आचार्य अजितसेन उस विद्यापीठ के कुलगुरु थे। कर्नाटक के प्रभावक और पूज्य आचार्य थे। उस समय चौलुक्यों पर राष्ट्रकूटों का स्वामित्व था। राष्ट्रकूट और गंगनरेशों के मुकुट एकसाथ उन महिमामय तपस्वी के चरणों में झकते थे। विद्यापीठ की सहायता के लिए जन सहयोग और राजकोष दोनों की उदारता उपलब्ध रहती थी। _ बंकापुर के आश्रम का सरस्वती भण्डार बहुत समृद्ध था। मैंने सुना था कि जैन वाङमय का ऐसा कोई ज्ञात शास्त्र नहीं है जिसकी प्रति वहाँ उपलब्ध न हो। शास्त्रों की प्रतियाँ कराकर वहाँ से दूर-दूर तक भेजी जाती थीं। निरन्तर अनेकों लिपिकार वहाँ शास्त्रों की प्रतियाँ उतारते रहते थे। आश्रम के लिए हाथियों पर लादकर ताड़पत्र लाये जाते थे। अजितसेन आचार्य सदैव अपने भक्तों को जैन धर्म, संस्कृति और साहित्य के प्रचार-प्रसार की प्रेरणा देते रहते थे। चामुण्डराय का विद्याभ्यास इसी विद्यापीठ में, इन्हीं श्रीगुरु के चरणों में बैठकर हुआ था। वाल्यावस्था में नेमिचन्द्र महाराज का प्रारम्भिक शिक्षण भी यहीं हुआ था। आचार्य महाराज के अनुरोध, और महामात्य की प्रार्थना पर, आचार्य अजितसेन अपने शिष्यों-प्रशिष्यों

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