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स्तम्भ पीठिका पर स्वयं चामुण्डराय को भी बैठे हुए दिखाया गया है। इस 'त्यागद ब्रह्मदेव स्तम्भ' की पीठिका चौकोर है। ऊपर की ओर सुन्दर लताओं से अलंकृत यह गोल स्तम्भ, शिल्प-सज्जा का एक सुन्दर प्रतीक है।
ब्रह्मदेव स्तम्भ के चारों ओर चार सादे स्तम्भों का यह मण्डप और उसके ऊपर यह जो देव-कुलिका आज तुम देखते हो, यह प्रारम्भ में यहाँ नहीं थी। कुछ समय उपरान्त स्तम्भ की शोभा-सुरक्षा के लिए इसका निर्माण किया गया। __ इसी स्तम्भ पर बाहुबली प्रतिमा के निर्माण का पूरा इतिहास और वीरमार्तण्ड चामुण्डराय की प्रशस्ति उत्कीर्ण की गयी थी। कालान्तर में एक मन्दिर निर्माता ने अपनी प्रशस्ति अंकित कराने के लिए, उस प्राचीन प्रशस्ति को घिसवाकर नष्ट कर दिया। अब उसका केवल प्रारम्भिक चतुर्थांश ही तुम लोगों को उपलब्ध है।
मैं देखता हूँ पथिक, कि जगत् की यही परम्परा है। तुमने सुना होगा कि आदि सम्राट चक्रवर्ती भरत ने भी, वृषभाचल की शिला पर इसी युक्ति से अपनी दिग्विजय की यशोगाथा किसी दिन उत्कीर्ण करायी थी। महोत्सव की संयोजना
जैसे-जैसे प्रतिष्ठापना महोत्सव का दिन निकट आ रहा था, वैसे ही वैसे उसकी बहविध संयोजना के कार्य यहाँ हो रहे थे। इस अवसर पर आने के लिए, बहुत दूर-दूर तक साधर्मीजनों को निमन्त्रण भेजे गये थे। प्रतिवेशी ग्रामों-नगरों से और दूर देशान्तरों से बहुसंख्यक यात्रियों के एकत्र होने की सम्भावना थी। उन सबके निवास-विश्राम और भोजनादिक की सुविधाएँ एकत्र की जा रही थीं। भाण्डारिक ने अनेक प्रकार के अन्नों के स्तूप ही खड़े कर दिये थे। गौ-क्षेत्र में सहस्राधिक गौएँ बुलवाकर पाकशाला के लिए तथा अभिषेक के लिए दुग्ध का प्रावधान किया गया था।
यहाँ, मेरे मस्तक से लेकर विन्ध्यगिरि के शीर्ष भाग तक, ग्राम्य कलाकार रुचिपूर्वक वन्दनवारों, दीप-शलाकाओं और रंग-रेखाओं की सज्जा कर रहे थे। मेरे परिवेश में वैसा उत्सव, फिर उसके उपरान्त कभी नहीं हुआ। भाँति-भाँति के वस्त्राभरणवाले, देश-देशान्तर के इतने स्त्रीपुरुष फिर कभी यहाँ एकत्र हुए हों, ऐसा मैंने नहीं देखा। इतने उत्साह के साथ, ऐसी विशाल संयोजनापूर्वक, गोमटेश का महाभिषेक भी उसके
१७० / गोमटेश-गाथा