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आचार्य के प्रस्थान के उपरान्त जनसमूह भी थोड़ा तितर-बितर हुआ। कुछ लोग नीचे की ओर भी चले आये, पर दूर-दूर से आनेवाले दर्शनार्थियों का वहाँ अब ताँता लग गया था। चार लोग समूह में से निकलते तब तक आठ नवागंतुक उसमें जा मिलते। वह मेला बढ़ता ही जा रहा था। लोग नाना प्रकार के वाद्य लेकर पहँचते और वहाँ सहज ही नवीन कीर्तन मण्डली की स्थापना हो जाती। जनमानस का यह उत्साह देखकर जिनदेवन ने, रात्रिकाल में आवागमन की सुविधा हेतु, प्रकाश की व्यवस्था प्रारम्भ करा दी। सन्ध्याकाल से वहाँ कीर्तन और आरती की संयोजना भी घोषित कर दी गयी।
१६२ / गोमटेश-गाथा