Book Title: Gomtesh Gatha
Author(s): Niraj Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 195
________________ बालहठ ने, और मातेश्वरी की लाड़भरी प्रताड़ना ने उसे भी गतिमान कर दिया। दो तीन समवयस्का महिलाओं ने उसका अनुसरण किया। आरती प्रारम्भ करने के उपरान्त क्षणमात्र में ही, सरस्वती का संकोच निरस्त हो गया। बाहुबली स्वामी के पुनीत चरणों को दृष्टि में बसाकर एकान्त समर्पण पूर्वक, तन्मयता के साथ, उसने भक्ति की गंगा प्रवाहित कर दी। तन्मयता की उस स्थिति में उसके लिए आराध्य के अतिरिक्त वहाँ किसी का अस्तित्व ही शेष नहीं रह गया था। महामात्य की पुत्रवध के उस भक्तिप्रेरित नृत्य ने दर्शकों को भावना के किसी दूसरे ही लोक में पहँचा दिया। दुग्धस्नात पाटल-पूष्प के समान उसका सिन्दूर-धवल मुख, नीले चीनांसुक परिधानों में ऐसा दिखाई देता था, जैसे कृष्ण घनमाला में शुक्लपक्ष का चन्द्रमा ही झाँक गया हो। कुलीनता के तेज ने, सुहाग के गौरव ने और मातृत्व की स्निग्धता ने, सरस्वती के मुख को, एक मोहक गरिमा से मण्डित कर दिया था। भक्ति के रूप में अर्चना की विविध मुद्राओं के साथ, उस सुदर्शना पुजारिन का तडित वेग-सा झंकृत पग-निक्षेप, वहाँ दूसरी नीलांजना का भ्रम उत्पन्न करता था। दिव्य था उसका रूप, और अलौकिक था उसका नृत्य। सूर्योदय की ललिमा ने जब धरती पर गुलाल बिखेरना प्रारम्भ किया, तब तक मृदंगम पर पड़नेवाली थाप में तनिक-सी भी शिथिलता उस रात मैंने नहीं सुनी। गोमटेश-गाथा/१६७

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