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'अभी तो बहुत तक्षण शेष है । प्रतिमा का समापन होने तक तो स्वर्ण का छोटा-सा पर्वत ही बन जायेगा उसके पास । इतना हो गया तब निश्चित ही सुख और आनन्द के झूले में झूलते ही उसका वृद्धापन बीतेगा ।'
अभी रूपकार कम से कम घड़ी भर तक अवश्य, उस स्वर्ण राशि की मोहक छवि का दर्शन करते हुए, कल्पना लोक की यात्रा का आनन्द उठाता, परन्तु अम्मा के उठ जाने के भय ने उसकी संकल्प-समाधि असमय भंग कर दी। पूर्व दिशा का अन्धकार धुँधलाने लगा था । कपाट को यथास्थान खींचकर वह प्रातः भ्रमण के लिए निकल गया ।
१२६ / गोमटेश-गाथा